उत्तराखंड: गर्मी शुरू होने से पहले फिर धधकने लगे जंगल, आग बुझाने नियुक्त होंगे 10 हजार वन प्रहरी
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उत्तराखंड के जंगलों में फिर आग लग गई है.
उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने (Forest Fire) की इस साल अभी तक 657 घटनाएं हो चुकी है. करीब 900 के आसपास पेड़ भी आग की भेंट चढ़ गए है.
वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार जंगलों में आग लगने के कारण इस साल अभी तक 28 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है. आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं गढ़वाल रीजन में हुई है. गढ़वाल रीजन में करीब 232 घटनाएं हो चुकी है. इसकी अपेक्षा कुमाऊं रीजन में अभी तक 152 घटनाएं सामने आई है. चिंता की बात ये है कि आग ने वाइल्ड लाइफ के लिए संरक्षित किए गए क्षेत्रों को भी चपेट में लिया है. इन क्षेत्रों में अभी तक आग लगने की नौ घटनाएं हो चुकी हैं.
वनस्पतियों को काफी नुकसान
उत्तराखंड में इस साल जनवरी से ही आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थी. बावजूद इसके वन विभाग की कार्रवाई फाइलों, मीटिंगों से आगे नहीं बढ़ पाई है. आग लगने के कारण जो नुकसान बताया जा रहा है, वो भी केवल जंगलों का नुकसान है. इसके कारण कितनी बहुमूल्य वनस्पतियां नष्ट हो गई, कितने जीव जंतु आग की भेंट चढ़ गए. जैव विविधता को कितना नुकसान हुआ , इसका कोई वैल्यूशन नहीं किया गया है. बीते सालों में जहां साल 2017 में 1228, साल 2018 में 4480, साल 2019 में 2981 और साल 2020 में मात्र 172 हेक्टेयर क्षेत्रफल आग से जलकर नष्ट हुआ था. वहीं इस साल अभी तक जब गर्मियां शुरू ही हो रही हैं, 814 हेक्टेयर क्षेत्रफल आग की भेंट चढ़ चुका है.मुख्यमंत्री ने दिए अहम निर्देश
इसी हफ्ते नव नियुक्त मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी फायर सीजन की समीक्षा मीटिंग की. सीएम ने निर्देश दिए कि आग लगने पर जरूरत पड़ने पर हैलीकाप्टर से आग बुझाने का प्रयास किया जाए. इसके अलावा उन्होंने फॉरेस्ट फायर से प्रभावित लोगों को तत्काल मुआवजा देने के भी निर्देश दिए. वन विभाग को इस बार कैंपा फंड से वन प्रहरी रखने के लिए भी साठ करोड़ रूपए मिले है. वन विभाग करीब दस हजार वन प्रहरी नियुक्त कर रहा है. मुख्यमंत्री ने इसमें पचास फीसदी वन पंचायतों से जुडी महिलाओं को रखने के निर्देश दिए हैं. इन वन प्रहरियों को वन विभाग सात से दस हजार रूपए प्रति महीने मानदेय देगा.
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उत्तराखंड में हर साल बेशकीमती वन संपदा आग लगने पर यूं ही राख हो जाती है लेकिन अफसरों की फौज से भरा वन विभाग आज तक कोई ठोस मैक्नेजेम डेवलप नहीं कर पाया. वन कर्मी आज भी झांडियों को काटकर आग बुझाते हुए नजर आ जाएंगे. जंगलों के आग की भेंट चढ़ने , आग बुझाने में लापरवाही बरतने पर आज तक किसी अफसर के खिलाफ कार्रवाई तो दूर की बात है, स्पष्टीकरण मांगे जाने तक का कोई उदाहरण आपको नहीं मिलेगा. हर साल फायर वॉचर, वॉच टावर, वायरलेस सेट, कंट्रोल रूम की संख्या गिनाकर वन विभाग जंगलों के प्रति अपने दायित्वों की पूर्ति कर लेता है.
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