उत्तराखंड में पिछले 6 दशकों में 14 प्रतिशत घटी किसानों की आय, खेती की जमीन भी हुई कम
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जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान ने अपने अध्ययन में यह पाया है कि उत्तराखंड के मैदानी और पहाड़ी क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि कम हुई है (न्यूज़ 18 ग्राफिक्स)
राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन के प्रभारी किरीट कुमार का कहना है कि मिशन ने अध्ययन किया है जिसकी रिपोर्ट सरकार को भेजी जा रही है. जिससे सरकार अपनी नीति बनाते समय इन अध्ययनों का ध्यान रखेगी. उन्होंने कहा कि किसानों (Farmers) को विशेष प्रोत्साहित करने की आवश्कता है
राष्ट्रीय हिमालय अध्ययन मिशन के प्रभारी किरीट कुमार का कहना है कि मिशन ने अध्ययन किया है जिसकी रिपोर्ट सरकार को भेजी जा रही है. जिससे सरकार अपनी नीति बनाते समय इन अध्ययनों का ध्यान रखेगी. उन्होंने कहा कि किसानों को विशेष प्रोत्साहित करने की आवश्कता है.
वैज्ञानिकों की टीम ने कृषि क्षेत्र में कमी और किसानों की घटती संख्या के लिए एक टीम बनाकर अध्ययन किया है. इसके लिए कई गांवों का टीम ने निरीक्षण कर वहां के किसानों से बात की गई तो वैज्ञानिकों को कई चौंकाने वाली बातें का पता चला. जीबी पंत हिमालय पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. रंजन जोशी ने राज्य में तेजी से घट रही खेती और किसानों पर सर्वे किया जिसमें पता चला कि पिछले छह दशकों में इसमें कमी आयी है. अब किसानों की संख्या कैसे बढ़े, इसके लिए प्रयास किये जा रहे हैं.
एक तरफ सरकार किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत कर रही है. वहीं उत्तराखंड में पहाड़ से लेकर मैदान तक कृषि क्षेत्र घट रहा है. इतना ही नही किसानों की संख्या में भी तेजी से कमी आ रही है जो कृषि क्षेत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है. हालांकि पहाड़ों में तेजी से किसानों के घटने की एक वजह पलायन को भी माना जा रहा है.
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