गंभीर पेयजल संकट की ओर बढ़ रहा उत्तराखंड, ऊधमसिंह नगर और अल्मोड़ा तरस रहे पानी को
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मैदान इलाकों में ऊधमसिंह नगर और पहाड़ से अल्मोड़ा में सबसे अधिक जल संकट है.
उत्तराखंड में 917 छोटे-बड़े ग्लेशियरों से दर्जनों बारहमासा बहने वाली नदियां निकलती हैं जो देश के कई राज्यों को भी पीने का पानी देती हैं , लेकिन खुद उत्तराखंड पानी के संकट से जूझ रहा है.
मैदान से ऊधमसिंह नगर और पहाड़ से अल्मोड़ा में सबसे अधिक जल संकट है. ऊधमसिंह नगर में प्रतिदिन 27 मिलियन लीटर पानी की जगह दस मिलियन लीटर पानी ही मिल पा रहा है. हालांकि जल संस्थान की महाप्रबंधक नीलिमा गर्ग का कहना है कि यहां हैंडपंप और टयूबवेल अधिक होने के कारण अधिकांश आपूर्ति इनसे हो जाती है. अल्मोडा में प्रतिदिन 21 मिलियन लीटर पानी की मांग के अनुरूप महज आठ मिलियन लीटर पानी ही मिल पा रहा है. ठीक इसी तरह देहरादून, हल्द्वानी,पौड़ी, पिथौरागढ़ में भी मांग के अनुरूप पानी उपलब्ध नहीं है.
इसके विपरीत लक्सर, सतपुली, कोटद्वार, झबरेडा, स्वर्गाश्रम, श्रीनगर, डोईवाला,ऋषिकेश ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां लोगों को पर्याप्त पानी मिल रहा है. जल संकट से निपटने के लिए विभाग चालू योजनाओं को अपग्रेड करने की भी योजना बना रहा है लेकिन, ये अभी प्रस्ताव तक ही सीमित हैं. बहरहाल, सूखते जल स्रोत, अंडरग्राऊंड वाटर का गिरता स्तर भविष्य में गहराते जल संकट की चेतावनी दे रहा है.
महाप्रबंधक, जल संस्थान नीलिमा गर्ग का कहना है कि नगर और ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट वाले क्षेत्र चिन्हित कर लिए हैं. नगरीय क्षेत्रों में 289 ग्रामीण में 687 बस्तियां, गांव चिन्हित किए गए हैं. इसके लिए 68 विभागीय टैंकर लगाए गए हैं, इसके अलावा 196 प्राइवेट टैंकर भी हायर किए गए हैं. वैकल्पिकव्यवस्था के तहत पानी उपलब्ध कराने के लिए नीलिमा गर्ग का कहना है कि पेयजल संकट से निपटने के लिए रेन वॉटर हारवेस्टिंग बेहद जरूरी है.
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