चमोली में ग्लेशियर टूटने की वजह क्या रही होंगी? क्या है Glaciers की रेगुलर मॉनिटरिंग का तरीका
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उत्तराखंड के चमौली में ग्लेशियर टूटने से हुई बड़ी तबाही ने खौफनाक मंज़र पैदा कर दिया है. (फाइल फोटो)
Uttarakhand Glacier Burst : आसमान साफ होने और तेज धूप निकलने पर ग्लेशियर की निचली परत पर काफी वजन आ जाता है. इससे ग्लेशियर में क्रैक आ जाते हैं. निचली परत के कमजोर हो जाने और पिघलने के कारण ग्लेशियर के टूटने की स्थिति बनना इसकी मुख्य वजहों में से एक होना संभव है.
- News18Hindi
- Last Updated:
February 7, 2021, 11:59 PM IST
ग्लोबल वॉर्मिंग से ग्लेशियर की निचली परत कमजोर होना बड़ी वजह संभव!
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट के मुख्य विज्ञानी महेश पालावत ने इस बारे में न्यूज18 हिंदी से विस्तृत बातचीत में कई तथ्य सामने रखे. उन्होंने कहा कि जाहिर है कि ग्लोबल वॉर्मिंग इस आपदा के पीछे बड़ी वजह रही है. उनका आकलन कहता है अभी उत्तराखंड में 3 से 5 फरवरी के बीच हुई ताजा बर्फबारी के कारण ग्लेशियरों पर काफी बर्फ जमा हुई. ऐसे में आसमान साफ होने और तेज धूप निकलने पर ग्लेशियर की निचली परत पर काफी वजन आ जाता है. इससे ग्लेशियर में क्रैक आ जाते हैं. निचली परत के कमजोर हो जाने और पिघलने के कारण ग्लेशियर के टूटने की स्थिति बनना इसकी मुख्य वजहों में से एक होना संभव है.
ऐसे पानी तेज बहाव से आगे की ओर बहा!वह बताते हैं कि ऐसे में जब ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा पहाड़ से बेहद तेजी से गिरता है तो उसके साथ मिट्टी, पत्थर एवं अन्य तत्व भी वेग से आकर नदी में गिरते हैं, जिससे पानी का बहाव उस गति में आ जाता है, जिसकी अपेक्षा नहीं की जा सकती. लिहाज़ा, शुरुआती कुछ घंटों में यह जिस-जिस हिस्से से गुजरता है, तबाही मचाता जाता है. हालांकि धीरे-धीरे इसकी गति कम हो जाती है.
यह है ग्लेशियर्स की रेगुलर मॉनिटरिंग का तरीका
ग्लेशियर्स पर आपदा की ऐसी स्थिति कब और कैसे बनती हैं, इसके जवाब में वह कहते हैं कि मौसम विभाग की ओर से ग्लेशियर्स की रेगुलर मॉनिटरिंग की जाती है. सैटेलाइट इमेजरी और रिमोट सेंसिग के जरिये लगातार ग्लेशियरों पर लगातार नज़र रखी जाती है, जिसमें यह देखा जाता है कि पिछले कुछ महीनों में फलां ग्लेशियर कितना पिघला है या फिर वह कितना बढ़ा है. इनके जरिये ग्लेशियरों की पूरी विस्तृत रिपोर्ट तैयार की जाती है.
हालांकि वह कहते हैं कि जब ग्लेशियरों में क्रैक आ जाते हैं तो उसमें अलवांच कब हो जाएगा, इसका पता नहीं चल पाता. इसका पूर्वानुमान लगा पाना मुश्किल ही होता है.
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