जैव विविधता दिवस 22 मई 2022 पर पढ़िए पद्म भूषण अनिल प्रकाश जोशी का आलेख
(लेखक पद्म भूषण से सम्मानित प्रख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता हैं)
देहरादून। भले ही हम इस बात पर गर्व करें कि मनुष्य प्रजाति किसी पर आश्रित नहीं, किंतु यह भी सत्य है कि ऐसे बहुत से कारण हैं जिनके लिए हम जैव विविधता पर निर्भर हैं। बैक्टीरिया से लेकर विशालकाय जीव-जंतु और वनस्पति मानव जीवन को सुगम बनाने के साथ ही विकास के सहभागी हैं। जैव विविधता दिवस (22 मई) पर पारिस्थितिकी और विकास में स्वावलंबन के समीकरण को समझ रहे भारत की प्रगति पर अनिल प्रकाश जोशी का आलेख…..
किसी भी देश की संपन्नता दो ही बड़े स्तंभों से जानी जाती है। पहला, उसकी आर्थिक प्रगति और दूसरा, पारिस्थितिकी। स्वाधीनता के बाद देश में स्वावलंबन के कई ऐसे बड़े प्रयास किए गए हैं जिन्होंने दुनिया में अपना परचम लहराया है और जिससे देश की बेहतर प्रगति को आंका जा सकता है। इतना ही नहीं स्वाधीनता के बाद विकास के बढ़ते कदमों के साथ-साथ पारिस्थितिकी को लेकर भी देश में गंभीरता बनी रही है। विकास के साथ पारिस्थितिकी को जोड़कर चलना स्वावलंबन का सबसे बड़ा कदम माना जा सकता है। यह किसी भी देश के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह आर्थिकी और पारिस्थितिकी को एक समान कदमों से लेकर चले।
योजनाओं से पनपी जैव विविधता
अपने देश ने भी इसी दृष्टि में जहां 75 साल में विकास के नए आयाम खड़े किए, वहीं दूसरी ओर पारिस्थितिकी की बेहतरी और उसके संरक्षण के लिए भी बराबर की गंभीरता दिखाई है। इसके बड़े उदाहरणों में देश ने करीब 106 राष्ट्रीय पार्क, 18 बायोस्फीयर, 551 वाइल्ड सेंचुरी को स्थापित किया। 870 ऐसे क्षेत्र चिन्हित किए, जिनसे पारिस्थितिकी व विकास में बराबरी बनी रहे। इतना ही नहीं, समुद्र में भी 131 ऐसे जोन बनाए, जिनमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ की अनुमति नहीं है। इन कदमों से देश ने संरक्षण की शुरुआत की और साथ में जैव विविधता को पूरी तरह फलने-फूलने का मौका भी दिया। यह कुल मिलाकर देश की करीब पांच प्रतिशत भूमि का हिस्सा है जो अर्थव्यवस्था की बेहतरी के साथ-साथ पारिस्थितिकी को बरकरार रखने और स्वावलंबन की ओर अग्रसर रहने का मजबूत कदम है।
जीवों को मिल रहा जीवन
पिछले लगातार 100 वर्षों में दुनिया में महत्वपूर्ण जैव विविधताओं के संकट में आने के कारण उन्हें सरंक्षित रखने की पहल की गई। खासतौर से वन्य जीवों को बचाने की, ताकि मनुष्य के बढ़ते विकास के कारण वन्य पारिस्थितिकी को प्रतिकूल प्रभाव से बचाया जा सके। इस दिशा में भारत के प्रभाव स्तुत्य हैं। उदाहरण के लिए, बाघों को बचाने के लिए सबसे प्रचलित योजना हमारे देश ने शुरू की। आज दुनियाभर के बचे हुए 4,000 बाघों में से 3,000 बाघ भारत में हैं। देश की इस योजना को दुनियाभर में प्रशंसा मिल रही है। इसी क्रम में गैंडे भी लगातार गुम हो रहे थे और दुनिया में उनकी संख्या घटती चली जा रही थी। पारिस्थितिकी और आवासीय चोटों के कारण इनकी संख्या पर प्रतिकूल असर पड़ा था, लेकिन आज गैंडों को लेकर एक बड़ी योजना ने हमारे बीच में 2,700 गैंडों को बचाया, जो दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में अकेले अपने देश में बचे हैं। इतना ही नहीं, बड़े संकट में चले गए घड़ियालों के लिए 2004 में प्रभावी कदम उठाए गए। आज संरक्षण के प्रयत्नों से यह 900 की संख्या में बचे हैं। इसी तरह ग्रेट इंडियन बस्टर्ड हो या सिक्किम का रेड पांडा, इन्हें भी संरक्षण के दायरे में लाया गया है।
नदियों में बसती है समृद्धि
डाल्फिन भी एक बड़ा उदाहरण है जो खतरे में पहुंच चुकी थी, लेकिन आज डाल्फिन फिर पनपने लगी है और उसका बड़ा कारण है नदियों का संरक्षण। खासतौर से जहां डाल्फिन पनपती हैं, उनके प्रति गंभीर हो जाना ही एकमात्र उपाय है। इस तरह से खतरे की सीमा में पहुंच गईं करीब 73 जलीय जीव प्रजातियों को बचाने में देश ने एक बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये उदाहरण हैं कि किस तरह से पारिस्थितिकी और आर्थिकी के प्रति देश ने गंभीरता दिखाई है। इन सबके अलावा नदियां, जो कि देश की धमनियों की तरह हैं और जिनसे देश की आर्थिक व्यवस्था पनपती है, उनके संरक्षण की पहल की गई है। 16 राज्यों की 33 नदियों को लेकर संरक्षण की एक बड़ी पहल हुई है। व्यास, भद्रा, कृष्णा, साबरमती, यमुना जैसी विभिन्न नदियों के प्रति देश ने बड़ी गंभीरता दिखाते हुए इन पर कार्य करने का बड़ा कदम उठाया है। 16 राज्यों की ये 33 नदियां 77 शहरों से होते हुए जाती हैं। इन सबके बीच देश की सबसे महत्वपूर्ण नदी गंगा की बेहतरी को लेकर नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा योजना की शुरुआत हुई। यह एक प्रतीक था कि किस तरह से देश नदियों के प्रति गंभीर है। इस महत्वाकांक्षी योजना ने इस ओर साफ इशारा भी किया कि आर्थिकी के साथ पारिस्थितिकी महत्वपूर्ण है।
इस बड़ी योजना ने जहां एक तरफ गंगा के पानी को बचाया और बढ़ाया, वहीं दूसरी तरफ जलजीवों को भी बचाया। चाहे कछुआ हो या मछलियां, इन सबको नए सिरे से जीवन मिला है।
स्वावलंबन का गौरवशाली सूचक
19वीं शताब्दी के मध्य में जब सबसे बड़ी चुनौती बेरोजगारी थी, उस समय दुनिया में उद्योग क्रांति ने जन्म लिया और साथ ही उसको नापने-मापने के लिए जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का भी जन्म हुआ। इस सूचक का मतलब यह दर्शाना था कि देश-विशेष आर्थिक रूप से प्रतिवर्ष किस तरह से प्रगति कर रहा है, जिसमें खासतौर से खेती-बाड़ी, उद्योग, सेवाएं व ढांचागत विकास सम्मिलित था। इस पैमाने पर अपना देश, दुनिया का पहला देश है जहां इसके उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के पारिस्थितिकी राज्य उत्तराखंड ने एक बड़ी महत्वपूर्ण पहल की। ऐसा दुनिया में पहली बार हुआ। इस पहल के अंतर्गत इस राज्य ने यह ठाना कि किस तरह से आर्थिकी के साथ पारिस्थितिकी सूचक भी सम्मिलित कर लिया जाए ताकि राज्य अपने विकास में इन दोनों को सम्मिलित कर सके।
ऐसा एक सूचक जीईपी (सकल पर्यावरण उत्पाद) के नाम पर शुरू हुआ, जिसे अंततरू राज्य की कैबिनेट ने पारित कर दुनिया का पहला राज्य होने का गर्व प्राप्त किया है। यह सूचक चार स्तंभों पर आधारित है कि वर्ष विशेष में वनों के संरक्षण के लिए क्या प्रगति की गयी, वर्षा जल-जो राज्य को और देश को प्राप्त होता है-उसका कितना हिस्सा मात्रा के रूप में संरक्षित किया गया? प्राणवायु को बेहतर करने के लिए क्या प्रयत्न हुए? साथ में मिट्टी, जिससे पेट के सवाल जुड़े हैं, उसकी गुणवत्ता बढ़ाने के लिए कौन से प्रयत्न किए गए? इन सबको मिलाकर एक पारिस्थितिकी सूचक तैयार किया गया। यह सूचक आने वाले समय में राज्य की आर्थिकी की स्थिति के अलावा पारिस्थितिकी की दशा को भी दर्शाएगा। मसलन अगर किसी वर्ष विशेष में जो भी आर्थिक प्रगति हुई, उसके लिए जीडीपी और पारिस्थितिकी के रूप में किस तरह से संरक्षण के लिए कार्य किए गए, वो जीईपी के रूप में हमारे सामने होंगे। यह अनोखा सूचक आने वाले समय में देश के स्वावलंबन सूचक के रूप में भी अपनी जगह बनाएगा।
न्यायपालिका भी कर रही जागरूक
देश की न्यायपालिका भी पिछले दशकों में पारिस्थितिकी के लिए गंभीर रही है। दुनिया के अन्य देशों की तरह ही भारत ने भी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल स्थापित कर पारिस्थितिकी के प्रति अपनी गंभीरता को दर्शाया है। देश के सर्वाेच्च न्यायालय ने बीच-बीच में पारिस्थितिकी की दशा पर टिप्पणी कर जहां जनमानस को जागरूक करने की कोशिश की, वहीं सरकारों को पर्यावरण के प्रति गंभीरता बरतने के लिए आदेशात्मक भूमिका निभाई है।
सुखद परिणामों के संकेत
मोटे रूप में देश पारिस्थितिकी की ओर दृढ़ स्वावलंबन की तैयारी कर रहा है। जैव विविधता को लेकर सामूहिक प्रयत्न करने की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं आज बेहतर परिणामों की तरफ अग्रसर हो चुकी हैं। उपरोक्त योजनाएं ऐसे कदम की ओर इशारा करती हैं कि आने वाले समय में अपना देश जहां आर्थिकी की तरफ बढ़ रहा है, वहीं पारिस्थितिकी को लेकर भी सुरक्षित है। पारिस्थितिकी के परिणाम समय लेते हैं पर स्थायी होते हैं। ये जहां एक तरफ अपने सुखद परिणामों को देने में समर्थ होते हैं, वहीं किसी भी देश की समृद्धि का बहुत बड़ा हिस्सा होते हैं। दुनिया के नक्शे पर यह अपना देश भारत ही है जिसने विकास के साथ ही समृद्धि का नारा दिया है और यह समृद्धि आर्थिकी और पारिस्थितिकी में स्वावलंबन के समीकरण से ही समझी जा सकती है।