उत्तराखंड

देहरादून: कैग रिपोर्ट में उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवाओं को मिला 17वां स्थान, इन सुविधाओं की अभी भी कमी

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आपातकालीन सेवाओं के लिए 14 प्रकार के आवश्यक उपकरणों में से इन हॉस्पिटलों में 29 से 64 फ़ीसदी उपकरण उपलब्ध ही नहीं थे.

आपातकालीन सेवाओं के लिए 14 प्रकार के आवश्यक उपकरणों में से इन हॉस्पिटलों में 29 से 64 फ़ीसदी उपकरण उपलब्ध ही नहीं थे.

रिपोर्ट कहती है कि चिकित्सालय में डॉक्टर भी प्रावधान के अनुरूप नहीं थे. जिला महिला चिकित्सालय अल्मोड़ा जिसमें प्रति महीने 100 से कम डिलीवरी होती हैं.

देहरादून. उत्तराखंड (Uttarakhand) के जिला चिकित्सालयों द्वारा दी जाने वाली सेवाओं को लेकर तैयार की गई कैग रिपोर्ट (CAG Report) स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खोल रही है. कैग ने इस  रिपोर्ट में पहाड़ के 2 जिलों चमोली और अल्मोड़ा तो मैदान के 2 जिलों हरिद्वार और उधम सिंह नगर के जिला चिकित्सालयओं का परीक्षण किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तराखंड स्वास्थ्य सूचकांक में 21 बड़े राज्यों में 17 वें स्थान पर है. सिर्फ मध्य प्रदेश,, उड़ीसा बिहार और उत्तर प्रदेश ही उत्तराखंड से पीछे हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि पदों की स्वीकृति के बावजूद पहाड़ के हॉस्पिटल (Hospital) में ईएनटी डॉक्टर तैनात नहीं हैं. हड्डी रोग विशेषज्ञों की तैनाती भी स्वीकृत पदों की अपेक्षा 50% थी. हरिद्वार और उधमसिंहनगर में सर्जन भी स्वीकृत पदों से अधिक तैनात थे. मानक के अनुसार जिला चिकित्सालय के लिए जो आवश्यक पैथोलॉजी उपकरण चाहिए होते हैं , वो नहीं थे. जिला महिला चिकित्सालय अल्मोड़ा में तो पैथोलॉजी लैब उपलब्ध ही नहीं है.

आपातकालीन सेवाओं के लिए 14 प्रकार के आवश्यक उपकरणों में से इन हॉस्पिटलों में 29 से 64 फ़ीसदी उपकरण उपलब्ध ही नहीं थे. इसके अलावा ऑपरेशन थिएटर के लिए 29 प्रकार के जो जरूरी उपकरण चाहिए, उनकी भी 70% तक कमी बनी हुई थी. चारों हॉस्पिटल में से आईसीयू सुविधा मात्र चमोली एवं संयुक्त चिकित्सालय उधम सिंह नगर में स्थापित की गई थी. लेकिन आवश्यक उपकरणों , मानव संसाधन के अभाव में ये भी काम नहीं कर रहे थे.

चिकित्सालय चमोली में उपलब्ध नहीं थे
संयुक्त चिकित्सालय चमोली में आवश्यक सेवाओं के लिए फरवरी 2009 में ट्रामा सेंटर का उद्घाटन किया गया था. लेकिन 20 मार्च 2020 तक भी ट्रामा सेंटर ने काम करना शुरू नहीं किया था. कैग रिपोर्ट में जच्चा- बच्चा सेवाओं को लेकर भी गंभीर चिंता जताई गई है. मातृत्व अनुभाग के लिए 21 प्रकार की जरूरी दवाइयों के सापेक्ष अस्पतालों में 6 औषधियां नहीं थीं. अस्पताल में शिशु को लपेटने वाली चादर उधम सिंह नगर को छोड़कर किसी भी जिला महिला चिकित्सालय और संयुक्त चिकित्सालय में उपलब्ध नहीं थी. प्रसूता महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड और गाउन जिला महिला चिकित्सालय हरिद्वार एवं संयुक्त चिकित्सालय चमोली में उपलब्ध नहीं थे.204 डिलीवरी केस में ये  इंजेक्शन नहीं दिया गया था
रिपोर्ट कहती है कि चिकित्सालय में डॉक्टर भी प्रावधान के अनुरूप नहीं थे. जिला महिला चिकित्सालय अल्मोड़ा जिसमें प्रति महीने 100 से कम डिलीवरी होती हैं. जिला महिला चिकित्सालय हरिद्वार एवं संयुक्त चिकित्सालय उधम सिंह नगर जहां प्रति महीने  बड़ी संख्या में डिलीवरी होती है की तुलना में स्त्री रोग विशेषज्ञ के अधिक स्वीकृत पद थे. साथ ही चमोली और उधम सिंह नगर में कोई भी स्त्री रोग विशेषज्ञ तैनात नहीं था. ऑडिट में पाया गया कि इन हॉस्पिटल में 4105 डिलीवरी में से 253 डिलीवरी समय से पूर्व हुई. इस प्रकार के केस में सुरक्षित डिलीवरी के लिए कार्टिको स्टेरॉइड इंजेक्शन दिया जाता है. लेकिन  इंजेक्शन उपलब्ध होने के बावजूद 204 डिलीवरी केस में ये  इंजेक्शन नहीं दिया गया था. कैग ने इसे लापरवाही माना है.

3 प्रकार की दवाइयां ही पूर्ण मात्रा में प्रदान की गई थी
कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि संयुक्त चिकित्सालय चमोली एवं जिला महिला चिकित्सालय हरिद्वार में सेवा संतोषजनक न होने के कारण समय से पहले ही अपने नवजात बच्चों को ले जाने वालों की संख्या सबसे अधिक थी. 2014 से 19 के बीच पांच सालों में संयुक्त चिकित्सालय चमोली में नवजात बच्चों की मृत्यु की दर सबसे अधिक थी. पहाड़ से लेकर मैदान तक इन चारों अस्पतालों में नवजात शिशुओं के टीकाकरण के लिए कोई भी अलग से रिकॉर्ड नहीं था. ऑडिट के दौरान 60 प्रकरण की जांच की गई तो पाया गया कि केवल 27 शिशुओं को ही समय पर तीन प्रकार के टीकों की खुराक दी गई थी. कैग रिपोर्ट बताती है कि अस्पतालों को उनके द्वारा मांग की गई औषधियों के अनुरूप मात्र 76 फ़ीसदी औषधियों की ही आपूर्ति की गई थी. संयुक्त चिकित्सालय उधम सिंह नगर को 164 प्रकार की दवाइयों की मांग के अनुरूप केवल 3 प्रकार की दवाइयां ही पूर्ण मात्रा में प्रदान की गई थी.

कैग ने राज्य सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं को पटरी पर लाने के लिए सुझाव भी दिए है.

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार को अति आवश्यक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सर्वप्रथम एक कार्य योजना बनानी चाहिए.  राज्य सरकार को 24 घंटे एक्सीडेंट एवं ट्रामा सेवाओं के साथ पूर्ण रूप से कार्यशील आईसीयू की सुविधा सुनिश्चित करनी चाहिए. जनसंख्या मापदंडों के अनुसार, उत्तराखंड में 4 सौ 18  पीएचसी एवं 105 सीएचसी की आवश्यकता है.जबकि मार्च 2019 तक उत्तराखंड में इसके विपरीत 259 पीएससी एवं 86 सीएचसी ही स्थापित थे.






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