भगत सिंह, जिन्हें जनता कहती है शहीद-ए-आजम लेकिन सरकार क्यों नहीं मानती?
नई दिल्ली। देश की आजादी में भगत सिंह का योगदान किसी से छिपा नहीं है। जनता उन्हें शहीद-ए-आजम कहती है। लेकिन सरकार अपने ऑफिशियल रिकॉर्ड में ऐसा नहीं मानती। देश को आजाद हुए 73 साल हो गए, लेकिन हम अपने रीयल हीरो के साथ न्याय नहीं कर सके। इसीलिए आज भी किताबों में उन्हें ‘क्रांतिकारी आतंकी’ लिखा जा रहा है। देश में सरकार किसी की भी रही हो उसने आजादी के बाद से ही चली आ रही इस गलती को ठीक नहीं किया है। जब संसद में ‘शहीद’ का मुद्दा उठता है तो जो भी पार्टी सत्ता में रहती है उसकी सरकार इन क्रांतिकारियों को शहीद मान लेती हैं लेकिन दस्तावेजों में ऐसा नहीं लिखती।
अपनी सुविधाओं और वेतन-भत्तों को बढ़वाने के लिए पार्टी लाइन से ऊपर उठकर एकजुटता दिखाने वाले नेताओं के पास उस महान क्रांतिकारी के लिए वक्त नहीं है जिनकी बदौलत भारत को अंग्रेजी गुलामी की बेड़ियों से मुक्ति मिली। आज उनकी 113वीं जयंती है। ट्विटर पर सरकार के लोग भी उन्हें शहीद ही कहेंगे, लेकिन रिकॉर्ड में ऐसा नहीं मानते। लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में कुछ सांसद इस मसले को उठा चुके हैं लेकिन, सरकार पर उसका कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ता। चाहे सत्ता में कोई भी पार्टी हो।
भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने संबंधी कोई सूचना सरकार के पास नहीं है
गरम दल वालों के प्रति नहीं बदला सरकारी नजरिया
शहीद-ए-आजम के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह कहते हैं कि ‘गरम दल यानी क्रांतिकारियों के प्रति जो नजरिया अंग्रेजी हुकूमत का था आजाद भारत की सरकारों का रवैया उससे ज्यादा अलग नहीं है। वरना क्या अपने लहू से भारत को आजाद करवाने वालों को अब तक शहीद का दर्जा तक नहीं मिलता? कैबिनेट में एक प्रस्ताव लाकर भगत सिंह सहित आजादी के सभी क्रांतिवीरों को ऑफिशियल रिकॉर्ड में शहीद घोषित किया जा सकता है। लेकिन इसके लिए सांसदों, मंत्रियों के पास शायद वक्त नहीं है। हम कोई रुपया पैसा नहीं मांग रहे। हम वो मांग रहे हैं जिस स्टेटस के क्रांतिकारी हकदार थे।
संधू इस मुद्दे को लेकर आंदोलन चला रहे हैं। सितंबर 2016 में इसी मांग को लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशज जलियावाला बाग से इंडिया गेट तक शहीद सम्मान जागृति यात्रा निकाल चुके हैं। संधू के मुताबिक वह इस मामले को लेकर भाजपा अमित शाह, राजनाथ सिंह, प्रकाश जावड़ेकर, स्मृति ईरानी, विनय विनय सहस्त्रबुद्धे से मिल चुके हैं। सहस्त्रबुद्धे गृह मंत्री को पत्र लिख चुके हैं। लेकिन हुआ कुछ नहीं।
संधू के मुताबिक ‘जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब मैंने भगत सिंह को शहीद घोषित करवाने के बारे में उनसे गांधी नगर में मुलाकात करके समर्थन मांगा था। उन्होंने भरोसा दिया था कि केंद्र में भाजपा की सरकार आई तो वह भगत सिंह को शहीद का दर्जा दिला देंगे। अब उनकी सरकार है लेकिन इस बारे में कार्रवाई आगे नहीं बढ़ी है’।
भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने के सवाल पर ऐसा जवाब
संसद में मान लेती है शहीद, आरटीआई में स्वीकार नहीं करती सरकार?
2013, 2016 और 2018 में डाली गई आरटीआई (RTI) में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जवाब नहीं दिया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सरकार ने शहीद का दर्जा दिया है या नहीं या कब दिया। उनके पास ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है। 19 अगस्त 2013 को तत्कालीन राज्यसभा सांसद केसी त्यागी ने सदन में यह मुद्दा उठाते हुए कहा था कि कि गृह मंत्रालय के जो लेख और अभिलेख हैं उनमें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा देने का काम नहीं हुआ। इस पर कुसुम राय, जय प्रकाश नारायण सिंह, राम विलास पासवान, राम गोपाल यादव, शिवानंद तिवारी, अजय संचेती, सतीश मिश्र और नरेश गुजराल सहित कई सदस्यों ने त्यागी का समर्थन किया था।
तब वर्तमान उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने बीजेपी नेता के रूप में कहा था कि ‘सरकार को इसे बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। वह यह देखे कि भगत सिंह का नाम शहीदों की सूची में सम्मलित किया जाए। वे जिस सम्मान और महत्व के हकदार हैं उन्हें प्रदान किया जाए। क्योंकि वे स्वतंत्रता सेनानियों के नायक थे। देश के युवा उनसे प्रेरित होते हैं’
तब के संसदीय कार्य राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा था कि ‘सरकार उन्हें बाकायदा शहीद मानती है और अगर सरकारी रिकार्ड में ऐसा नहीं है तो इसे सुधारा जाएगा। सरकार पूरी तरह से उन्हें शहीद मानती है और शहीद का दर्जा देती है’। लेकिन ताज्जुब यह है अब तक सरकार ने इस बारे में रिकॉर्ड नहीं सुधारा।
एक कार्यक्रम में भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू को सम्मानित करते पीएम मोदी
2016 में अनुराग ठाकुर ने उठाया था मुद्दा
अनुराग सिंह ठाकुर ने 24 अप्रैल 2016 को संसद में कहा, ‘दिल्ली विश्वविद्यालय में एक किताब जिसका टाइटल ‘इंडियाज स्ट्रगल फॉर इंडिपेंडेंस’ है, जिसमें भगत सिंह को रेवोल्यूशनरी टेररिस्ट, आतंकवादी के रूप में दिखाने की कोशिश की गई है।।।।भगत सिंह ने इस देश को आजाद किया तब जाकर हम लोग इस सदन में बैठे हैं।।।आप भगत सिंह को आतंकवादी नहीं कह सकते।’ उन्होंने इस पुस्तक के बहाने कांग्रेस और लेफ्ट को घेरने की कोशिश की थी। हालांकि, अब तक एनडीए सरकार ने भी भगत सिंह को सरकारी रिकॉर्ड में शहीद घोषित नहीं किया है।
आप और शिअद भी उठा चुका है मुद्दा
आम आदमी पार्टी (AAP) के सांसद भगवंत मान ने भी भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने की मांग उठाई है। शिरोमणि अकाली दल से राज्यसभा सांसद सरदार बलविंदर सिंह भुंडर भी इस मुद्दे को सदन में उठा चुके हैं। लेकिन सरकार है कि मानती नहीं।
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने क्या कहा?
दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में भगत सिंह की जेल डायरी के विमोचन कार्यक्रम में 6 जून 2018 को कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ‘जिस दिन आरटीआई की बात आई थी कि भगत सिंह शहीद नहीं हैं, उस दिन संसद में विपक्ष के एक नेता ने सवाल उठाया था। वेंकैया जी ने मेरी तरफ देखा, मैं खड़ा हुआ और कहा कि सरकार से प्रतिकार करता हूं कि आरटीआई की सूचना गलत दी गई है। शहीद भगत सिंह को किसी आरटीआई के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं। वो शहीद थे, हैं और रहेंगे।’
प्रसाद ने कहा ‘एक दिन मेरे पास विद्या भारती के लोग आए और बताने लगे कि एनसीईआरटी की किताबों में बच्चों को पढ़ाया जा रहा है कि भगत सिंह और रास बिहारी बोस आतंकवादी क्रांतिकारी थे। जिसने मां भारती को बेड़ियों से मुक्त करवाने के लिए हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया उन्हें आतंकवादी कहा जाए, यह ठीक नहीं।’
लोकसभा और राज्यसभा दोनों में उठता रहता है यह मामला
इसलिए जरूरी है शहीद का दर्जा?
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पाठ्यक्रम के रूप में पढ़ाई जाने वाली ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ नामक किताब में शहीद भगत सिंह को जगह-जगह क्रांतिकारी आतंकवादी कहा गया था। जम्मू यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एम। ताजुद्दीन ने दिसंबर 2018 में भगत सिंह को कथित रूप से ‘आतंकी’ कहा था। हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान पर सफाई देते हुए माफी मांग ली थी। संधू का कहना है कि सरकार अगर अपनी गलती सुधार ले तो ऐसी घटनाएं बंद हो जाएंगी।
शहीद घोषित करने में क्या कोई तकनीकी दिक्कत है?
देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि भगत सिंह ने देश के लिए अपनी जान दे दी, फिर सरकार को शहीद घोषित करने में क्या दिक्कत हो सकती है। दरअसल सरकार को भगत सिंह से कोई सियासी फायदा नहीं होता इसलिए वह इस बारे में जज्बा भी नहीं दिखाती। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। सरकार जब चाहे तब भगत सिंह को दस्तावेजों में शहीद घोषित कर सकती है, इसमें कोई तकनीकी दिक्कत नहीं है। भगत सिंह अंग्रेजों के लिए क्रांतिकारी आतंकी थे, हमारे लिए वह शहीद हैं। दुर्भाग्य ये है कि आजाद भारत में भी उन्हें कुछ किताबों में क्रांतिकारी आतंकी लिखा जा रहा है।
एक दिन पहले, वो भी शाम को दे दी गई थी फांसी
भगत सिंह के प्रपौत्र यादवेंद्र सिंह संधू कहते हैं कि आमतौर पर फांसी सुबह दी जाती है। लेकिन अंग्रेजों ने भगत सिंह को लाहौर सेंट्रल जेल में शाम को फांसी दे दी थी। तारीख थी 1931 की 23 मार्च। वक्त था शाम करीब साढ़े सात बजे का। ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह के साथ उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरू को भी फांसी दी थी। फांसी 24 मार्च 1931 की सुबह दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार डर गई क्योंकि लोग एकत्र होने शुरू हो गए थे। संधू कहते हैं कि भगत सिंह ने सिर्फ 23 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान दे दी। उनकी शहादत के 89 साल बाद भी ऑफिशियल रिकॉर्ड में शहीद घोषित करने से सरकारें परहेज कर रही हैं।