Chamoli Glacier Tragedy: अब तक कुल 58 शव मिले, अध्ययन में जुटे वैज्ञानिक– News18 Hindi
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अलग-अलग तरीके से अध्ययन
चमोली जिले में आपदा के बाद से वैज्ञानिक ग्लेशियरो को लेकर अलग अलग तरीके से अध्ययन में जुटे हुए हैं. राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) के वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लेशियर के साथ उस जगह की घाटी और क्षेत्र का भी अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि लोगों को समय समय पर जागरूक किया जा सके. ग्लेशियर झीलों के टूटने से आने वाली तबाही और बचाव के लिए राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के सहयोग से डिजास्टर मैनेजमेंट ऑथरिटी ने 10 चेप्टर की गाइड लाइन तैयार की है. इसमें स्विजरलैंड की सिवस एजेंसी ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
एनआईएच के वैज्ञानिकों का कहना है कि गाइड लाइन के अनुसार हिमालयी झीलों का रोजाना सेटेलाइट और अन्य तकनीक के माध्यम से मॉनिटरिंग हो,इसका हर रोज डाटा सार्वजनिक हो. साथ ही जिन जगहों पर ग्लेशियर सिकुड़ रहे है, वहाँ पर फोकस कर झीलों में पानी कम करने के लिए पम्पिंग को अमल में लाया जाए. वहींस उन्होंने बताया कि गाइड लाइन में बताया गया है कि स्थनीय प्रशासन को और आपदा तंत्र से जुड़े लोगों को भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि जानमाल के खतरे से बचा जा सके.
अर्ली वार्निंग सिस्टम भी जरूरत
एनआईएच के वैज्ञानिक एके लोहानी का कहना है कि जिन क्षेत्रों में ग्लेशियर टूटने का डर रहता है, उस घाटी और क्षेत्र के भौगोलिक परिस्थितियों का भी अध्ययन करना जरूरी है, तभी बड़ी आपदाओं से निपटा जा सकता है और उन क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम भी लगाए जाने चाहिए, ताकि आपदा के समय बचा जा सके. एक बात तो जरूर है कि चमौली जिले में हुए जल प्रलय के बाद से वैज्ञानिक भी अब सतर्क नज़र आने लगे हैं और लोगों को जागरूक करना का लगातार प्रयास कर रहे है.
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