Haridwar Kumbh 2021: कुंभ में गंगा स्नान से मिलता है मोक्ष, पढ़ें ये पौराणिक कथाएं– News18 Hindi
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कुंभ की पहली कथा:
पहली कथा इन्द्र से सम्बद्ध है जिसमें दुर्वासा द्वारा दी गई दिव्य माला का असहनीय अपमान हुआ. इन्द्र ने उस माला को ऐरावत के मस्तक पर रख दिया और ऐरावत ने उसे नीचे खींच कर पैरों से कुचल दिया. दुर्वासा ने फलतः भयंकर शाप दिया, जिसके कारण सारे संसार में हाहाकार मच गया. अनावृष्टि और दुर्भिक्ष से प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठी. नारायण की कृपा से समुद्र-मंथन की प्रक्रिया द्वारा लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ, जिसमें वृष्टि होने लगी और कृषक वर्ग का कष्ट कट गया.
अमृतपान से वंचित असुरों ने कुंभ को नागलोक में छिपा दिया जहां से गरुड़ ने उसका उद्धार किया और उसी संदर्भ में क्षीरसागर तक पहुंचने से पूर्व जिन स्थानों पर उन्होंने कलश रखा, वे ही कुंभ स्थलों के रूप में प्रसिद्ध हुए.
कुंभ की दूसरी कथा:
दूसरी कथा प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों के से संबद्ध है. विवाद इस बात पर हुआ कि सूर्य के अश्व काले हैं या सफेद. जिसकी बात झूठी निकलेगी वहीं दासी बन जाएगी. कद्रू के पुत्र थे नागराज वासु और विनता के पुत्र थे वैनतेय गरुड़. कद्रू ने अपने नागवंशों को प्रेरित करके उनके कालेपन से सूर्य के अश्वों को ढंक दिया फलतः विनता हार गई. दासी के रूप में अपने को असहाय संकट से छुड़ाने के लिए विनता ने अपने पुत्र गरुड़ से कहा, तो उन्होंने पूछा कि ऐसा कैसे हो सकता है. कद्रू ने शर्त रखी कि नागलोक से वासुकि-रक्षित अमृत-कुंभ जब भी कोई ला देगा, मैं उसे दासत्व से मुक्ति दे दूंगी.
विनता ने अपने पुत्र को यह दायित्व सौंपा जिसमें वे सफल हुए. गरुड़ अमृत कलश को लेकर भू-लोक होते हुए अपने पिता कश्यप मुनि के उत्तराखंड में गंधमादन पर्वत पर स्थित आश्रम के लिए चल पड़े. उधर, वासुकि ने इन्द्र को सूचना दे दी. इन्द्र ने गरुड़ पर चार बार आक्रमण किया और चारों प्रसिद्ध स्थानों पर कुंभ का अमृत छलका जिससे कुंभ पर्व की धारणा उत्पन्न हुई.
देवासुर संग्राम की जगह इस कथा में गरुड़ नाग संघर्ष प्रमुख हो गया. जयन्त की जगह स्वयं इन्द्र सामने आ गए. यह कहना कठिन है कि कौन- सी कथा अधिक विश्वसनीय और लोकप्रिय है.
समुद्र-मंथन की तीसरी कथा :
यह कथा इन्द्र द्वारा ऋषि दुर्वासा, जिनका क्रोध कोई नहीं झेल पाया था, का असम्मान करने और परिणामस्वरूप अपना सिंहासन गंवाने से जुड़ी कहानी कहती है. मंदार पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से समुद्र मंथन की तैयारी शुरू की गई. मंदार पर्वत के चारो ओर सर्प वासुकि को लपेटकर रस्सी की तरह प्रयोग किया गया. इतना ही नहीं विष्णु ने कछुए का रूप लेकर मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसे सागर में डूबने से बचाया था.
क्षीर सागर में इस अमृत मंथन के दौरान सागर से सिर्फ अमृत का प्याला ही नहीं बल्कि और भी बहुत सी चीजें निकली थीं, जिनका वितरण देवताओं और असुरों में बराबर रूप से किया गया था. समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले विष का प्याला, हलाहल निकला, जिसे ना तो देवता ग्रहण करना चाहते थे और ना ही असुर. यह विष इतना खतरनाक था जो संपूर्ण ब्रह्मांड का विनाश कर सकता था. हलाहल विष को ग्रहण करने के लिए स्वयं भगवान शिव आए.
शिव ने विष का प्याला पी लिया लेकिन उनकी पत्नी पार्वती, जो उनके साथ खड़ी थीं उन्होंने उनके गले को पकड़ लिया ताकि विष उनके भीतर ना जा सके. ऐसे में ना तो विष उनके गले से बाहर निकला और ना ही शरीर के अंदर गया. वह उनके गले में ही अटक गया, जिसकी वजह से उनका गला नीला पड़ गया.
देवता चाहते थे कि अमृत के प्याले में से एक भी घूंट असुरों को ना मिल पाए, नहीं तो वे अमर हो जाएंगे. वहीं असुर अपनी शक्तियों को बढ़ाने और अनश्वर रहने के लिए अमृत का पान किसी भी रूप में करना चाहते थे. असुरों के हाथ अमृत का प्याला ना लग सके इसलिए स्वयं भगवान विष्णु को मोहिनी का रूप धरना पड़ा, ताकि वे असुरों का ध्यान अमृत से हटाकर सारा प्याला देवताओं को पिला सकें. (Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)
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