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मन के सौंदर्य से निखरी हरनाज

अरुण नैथानी

पिछले दिनों दक्षिण अफ्रीका से एक सुकून देने वाली मीठी बयार-सी खबर आई कि 21 साल की हरनाज संधू ने देश को 21 साल बाद 21वीं सदी के 21वें साल में ब्रह्माण्ड सुंदरी का खिताब सौंपा है। वैसे वे इस खिताब को जीतने वाली तीसरी भारतीय सौंदर्य प्रतिभा हैं, लेकिन संयोग देखिये 21 साल पहले जब लारा दत्ता ने मिस यूनिवर्स का खिताब जीता था, तब हरनाज का जन्म हुआ था। बहरहाल, बाह्य सुंदरता के साथ सुंदर मन की धनी हरनाज पर हर भारतीय को नाज है। हरनाज की सबसे बड़ी खूबसूरती यह है कि वह भारतीय जीवन दर्शन और मूल्यों की सशक्त पक्षधर है। वह उस भारतीय मेधा की धनी है, जिसके बूते भारतीय प्रतिभाएं पूरी दुनिया में धूम मचा रही हैं। उसके पास एक स्पष्ट दृष्टि, गहरे मानवीय सरोकार हैं, सकारात्मक दृष्टिकोण है और परिवार के प्रति असीम प्रेम। उसकी जीवन शैली पश्चिमी देशों के मूल्यों के अनुरूप नहीं है। वैचारिक रूप से इतनी सशक्त है कि जब अंत में उससे युवाओं की चुनौतियों को लेकर सवाल पूछा गया तो उसने इतने तार्किक ढंग से अपनी बात कही कि 79 देशों से आई सुंदरियां परास्त हो गईं।

पंजाब के गुरदासपुर के एक गांव में जन्मी और चंडीगढ़ में पली-बढ़ी हरनाज अपने शुरुआती सालों में बेहद अंतर्मुखी और दुबली-पतली लडक़ी थी। उसको दुबलेपन की वजह से हीनता का बोध कराया जाता था। लेकिन कालांतर में उसने अपने को बदला और आंतरिक रूप से खुद को मजबूत किया। ग्लैमर की दुनिया में उसकी दस्तक ज्यादा पुरानी नहीं है। लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने वाली हरनाज जब कालेज के रैंप पर चली तो उसका रुझान सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तरफ बढ़ा। वह विज्ञापन के साथ फिल्में भी करने लगी। दो फिल्में की हैं लेकिन अभी रिलीज होना बाकी है।

दरअसल, हरनाज के व्यक्तित्व में उसकी परवरिश की गहरी छाप है। कभी उसे उसके विधायक व वकील नाना के व्यक्तित्व ने प्रभावित किया तो कभी सरकारी अस्पताल में महिला रोग विशेषज्ञ मां ने। उसने कोविड महामारी के दौरान अपनी मां को जूझते देखा। रियल स्टेट का कारोबार करने वाले पिता का भी अनुसरण किया जो अक्सर उसे शेरनी कहा करते थे। पिता की वह सीख उसे याद रही कि खाना बनाना और गाड़ी चलाना हर किसी को आना चाहिए। कोरोना काल में जब मां की सख्त ड्यूटी होती थी, वह शौक से खाना बनाया करती थी। खाने को लेकर हरनाज की सोच बड़ी आध्यात्मिक है। वह बताती है कि मां कहती है कि खाना अरदास करते हुए बनाओ। आपके सकारात्मक भाव खाने वाले तक भी पहुंचे। उसे इसका लाभ पहुंचेगा और उसकी सेहत ठीक रहेगी। सात साल बड़ा भाई सदा मददगार ही रहा।

संवेदनशील व मानवीय दृष्टिकोण से भरपूर हरनाज कविताएं भी लिखती रही हैं और डायरी पर नियमित कुछ न कुछ दर्ज करती रही है। पढऩे-लिखने का भी शौक था। खूब खाने का भी। एक पंजाबी लडक़ी की तरह उसे सरसों का साग व मक्की की रोटी खूब पसंद है। राजमा चावल का अलग शौक है। वह भारतीय लड़कियों को सलाह देती है कि भूखे रहकर शरीर बनाने का शौक नहीं होना चाहिए। जो मन आये उसे खाओ, मगर वर्क आउट जरूर करें। हरनाज मानसिक रूप से जो इतनी सशक्त है तो उसमें योग की भी बड़ी भूमिका है। वह नियमित रूप से योग करती है।

सकारात्मक सोच और प्यारी-सी मुस्कान हरनाज का गहना है। वह बताती है कि कोरोना महामारी ने हमें हमारे जीवन मूल्यों का अहसास कराया। हमें फिर प्यार से एकसाथ रहना सिखाया। युवाओं से हरनाज कहती है कि सकारात्मक सोच के साथ हम परिवार के संबल से हर लक्ष्य हासिल कर सकते हैं। वह देश में मानसिक स्वास्थ्य, लैंगिक समानता व जलवायु परिवर्तन के संकट को दूर करने के लिये काम करना चाहती है।
वैचारिक रूप से हरनाज कितनी सशक्त है, इस बानगी अंतिम चरण के उसके उद्वेलित करने वाले विचारों से पता चलता है। इस जवाब ने उसे सभी प्रतियोगियों में नंबर वन बनाकर ताज सौंप दिया। मौजूदा दौर में दबाव का सामना करने वाली युवतियों के बारे में उसने कहा कि ‘वे खुद पर भरोसा करना सीखें। अपनी विशिष्टता का अहसास आपको खूबसूरत बनाता है। दूसरों से तुलना नहीं होनी चाहिए। दुनिया के घटनाक्रम पर नजर रखें और अपनी प्रतिक्रिया दें। खुद के लिये बोलिये। अपने नेता आप हैं। आपका आत्मविश्वास आपको सफलता दिलाता है।’

जब हरनाज से विश्व की सबसे बड़ी चुनौती जलवायु संकट पर राय पूछी गई तो उसने कहा, ‘आज प्रकृति की दशा देखकर मैं व्यथित हूं। प्रकृति की इस दशा के मूल में हमारा गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार ही है। जरूरी है कि हम बात करने के बजाय ठोस काम करें। प्रकृति हमारी सकारात्मक पहल से बचेगी। प्रकृति को हो रही क्षति को रोकना व संरक्षण देना वक्त की जरूरत है।
हरनाज का सुंदरता को लेकर नजरिया भारतीय दर्शन व योग के अनुरूप ही है। उसका मानना है कि सुंदरता हमारी दृष्टि व महसूस करने पर निर्भर है। मन के सुंदर व्यक्ति को मैं सुंदर मानती हूं। जो प्रकृति व मानवता से प्रेम करते हैं वे सुंदर होते हैं। भगवान ने सभी को बनाया है, सुंदरता-असुंदरता शब्द हमने गढ़े हैं। यदि हम किसी को असुंदर कहते हैं तो यह विधि के विधान का अपमान ही कहा जायेगा। वह हर पल खुश रहने की वकालत करती है क्योंकि आंतरिक खुशी हमारे चेहरे को सुंदर बनाती है।

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