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Lockdown के दौरान उत्तराखंड में सामने आई सबसे हैरान और परेशान करने वाली जानकारी 

ब्यूरो रिपोर्ट देहरादून: 2020 साल कोरोना महामारी के नाम रहा. इसकी वजह से देश में लॉकडाउन लगा. थोड़ा स्थितियां सुधरीं तो अनलॉक हुआ. वहीं, वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से पूरे देश में 24 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया. जिसके कारण अधिकांश लोग अपने घरों में दुबकने को मजबूर हो गए. लेकिन लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड में महिला अपराध को लेकर सबसे हैरान और परेशान करने वाली जानकारी सामने आई है. जी हां, पिछले 3 वर्षों की तुलना में इस महामारी काल में महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. ऐसे में कोरोना काल बंदी के दौरान महिला अपराध में इजाफा होने से कानूनी जानकारी हैरान हैं.

वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से पूरे देश में 24 मार्च को लॉकडाउन लगाया गया. जिसके कारण अधिकांश लोग अपने घरों में दुबकने को मजबूर हो गए. लेकिन लॉकडाउन के दौरान उत्तराखंड में महिला अपराध को लेकर सबसे हैरान और परेशान करने वाली जानकारी सामने आई है. जी हां, पिछले 3 वर्षों की तुलना में इस महामारी काल में महिलाओं से दुष्कर्म के मामलों में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. ऐसे में कोरोना काल बंदी के दौरान महिला अपराध में इजाफा होने से कानूनी जानकारी हैरान हैं.

उत्तराखंड में साल दर साल बढ़ते महिला दुष्कर्म जैसे अपराधों के संबंध में पॉक्सो कोर्ट अधिवक्ता का कहना है कि इन अपराधों में कानून संशोधन कर कड़े कर दिए गए हैं. लेकिन इसके प्रति जागरूकता ना होने के कारण भी महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद अब पहले के मुकाबले थाना-चौकी प्राथमिकता के आधार पर महिला अपराध के मुकदमे कर रही हैं. जिसके चलते भी आंकड़ों की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है.

उत्तराखंड में महिला अपराध खिलाफ मजबूत पैरवी कर चार दोषियों को फांसी की सजा तक ले जाने वाले देहरादून पॉक्सो कोर्ट के शासकीय अधिवक्ता भरत सिंह नेगी ने ईटीवी भारत से बातचीत की. अधिवक्ता नेगी का मानना है कि इस मामले में अभिभावक भी कहीं ना कहीं जिम्मेदार हैं. उनके अनुसार भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यस्त रहकर कमाई की होड़ में अभिभावक बच्चों की जिंदगी से दूर होते जा रहे हैं, जिसका फायदा उठाकर अपराधी दुष्कर्म जैसी घटनाओं को अंजाम देते हैं.

भरत सिंह नेगी के मुताबिक बलात्कार के मामले में कानून पहले से कई गुना सख्त हो चुका है. वयस्क मामले में सात साल की सजा के बजाय कम से कम 10 साल की सजा और आजीवन सजा तक का प्रावधान है. वहीं, नाबालिग से दुष्कर्म मामले में 10 साल के बजाय अब कम से कम 20 साल की सजा हो गई है. इसके बावजूद इस कानून की सख्ती पर जागरूकता ना होने के कारण भी अपराध बढ़ रहे हैं.

अधिवक्ता भरत सिंह नेगी के कहा कि सर्वोच्च अदालत की सख्ती के बाद महिला अपराध के मुकदमे दर्ज ना करने पर संबंधित पुलिस को नए कानून के तहत 6 माह की सजा का प्रावधान है. ऐसे में अब पुलिस दुष्कर्म जैसे अपराध में मुकदमा दर्ज करने से मना नहीं कर सकती है. जबकि, पहले यह मामले समझौता कराकर निपटाए जाते थे. वहीं दूसरी ओर स्कूल, कॉलेज, घरों और अन्य स्थानों में होने वाले दुष्कर्म मामलों को जानबूझकर अगर कोई छुपाता है तो उस स्थिति में भी संबंधित व्यक्ति को 6 माह की सजा नए संशोधित कानून के अनुसार हो सकती है.

उत्तराखंड में साल दर साल महिला यौन शोषण, दुष्कर्म जैसे मामलों में बढ़ोत्तरी देखने को मिल रही है. कानूनी जानकारों का मानना है कि बढ़ता महिला अपराध चिंता का विषय है. वहीं, सबसे हैरानी की बात यह है कि कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान लोग घरों में रहने को मजबूर थे, बावजूद विगत वर्षों की तुलना इस वर्ष पिछले 10 महीनों में महिला अपराध के आंकड़े बढ़े हैं.

अधिवक्ता रजत दुआ के मुताबिक भले ही महिला अपराध से जुड़े मामलों में उत्तराखंड पुलिस अधिक से अधिक मुकदमे दर्ज कर रही है, लेकिन इसके बावजूद सतर्कता बढ़ाने के लिए देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व उधम सिंह नगर में तैनात सिटी पेट्रोल यूनिट को अब महिला सुरक्षा पर भी नजर बनाकर कार्य करने की जरूरत है.

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