ब्लॉग

नए भारत का कायदा

सोमवार को अदालत ने उन्हें जमानत देने का फैसला किया। लेकिन उससे मेवाणी को राहत नहीं मिली। क्योंकि वे जैसे ही कोर्ट से बाहर आए, एक महिला पुलिसकर्मी से दुर्व्यवहार करने के एक नए मामले में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिय गया। इस मामले में उन्हें कब रिहाई मिलेगी, कोई नहीं जानता।

भारत में किसी ट्विट के लिए गिरफ्तार हो जाना अब कोई असामान्य बात नहीं है। जहां एक कॉमेडियन इस संदेह में गिरफ्तार होकर महीनों जेल में गुजार चुका हो कि वह बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला कोई व्यंग्य सुना सकता है, वहां प्रधानमंत्री के बारे में ट्विट करने पर गुजरात के कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक जिग्नेस मेवाणी जेल चले गए, तो उसमें कोई हैरत की बात नहीं है। अगर आज की सरकार ने मन बनाया कि मेवाणी को जेल भेजना है, तो फिर उससे बचने का शायद उनके पास कोई चारा नहीं बचता। तो असम की पुलिस ने गुजरात आकर उन्हें हिरासत में लिया और अपने राज्य ले गई। गौर कीजिए। वहां के न्यायालय को यह जरूरत महसूस हुई कि ट्विट की जांच-पड़ताल के लिए मेवाणी को तीन दिन के पुलिस रिमांड में भेजा जाए। उसके बाद उनकी जमानत पर अर्जी पर फैसला सुरक्षित कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया। सोमवार को अदालत ने उन्हें जमानत देने का फैसला किया। लेकिन उससे मेवाणी को राहत नहीं मिली। क्योंकि वे जैसे ही कोर्ट से बाहर आए, एक महिला पुलिसकर्मी से दुर्व्यवहार करने के एक नए मामले में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया।

इस मामले में उन्हें कब रिहाई मिलेगी, कोई नहीं जानता। फिलहाल, वे इस पर अपनी खैर मना सकते हैं कि अब तक उन पर यूएपीए (गैर-कानूनी गतिविधि निवारक कानून) और राजद्रोह कानून के तहत धाराएं नहीं लगाई गई हैँ। लेकिन वे इस बारे में आश्वस्त नहीं हो सकते कि भविष्य में भी ऐसा नहीं होगा। असल सवाल उनके कथित जुर्म का नहीं है। असल सवाल यह है कि आज देश का यही कायदा है। सत्ताधारी अगर खफा हो जाएं, तो फिर किसी की खैर नहीं है। पी चिदंबरम से लेकर भीमा कोरेगांव और सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं तक को इस बात का अहसास हो चुका है। जब किसी समाज में रूल ऑफ लॉ (कानून के राज) का यह हाल हो जाए, तो वहां का लोकतंत्र किस दर्जे का है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। जहां भाजपा नेता (महाराष्ट्र के एक नेता का बयान चर्चित हुआ था) खुलेआम कहते हों कि सत्ताधारी पार्टी में रहने पर अच्छी नींद आती है, क्योंकि किसी सरकारी एजेंसी के दस्तक देने का डर नहीं रहता, वहां समझा जा सकता है कि कानून किस रूप में काम कर रहा है- अथवा कानून का कैसा इस्तेमाल हो रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *