ब्लॉग

नवसंवत्सर का अतीत,वर्तमान और भविष्य!

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट

चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि।
शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति।

नवसंवत्सर को रेवती नक्षत्र में, विष्कुंभ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्यरूप का प्रादुर्भाव माना जाता है।प्रथम सत् युग के प्रारंभ की तिथि भी यही है। इसी दिन सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने शकां पर विजय प्राप्त की थी और उसे चिरस्थायी बनाने के लिए विक्रम संवत प्रारंभ किया था।21 मार्च को पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा पूरी कर लेती है, उस समय दिन और रात बराबर होते हैं,12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ था। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा गया है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने भी अपनाया है। विक्रम संवत से पूर्व 6676 ईसवी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईसवी पूर्व हुई मानी जाती है।श्रीकृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर की शुरुआत हुई और फिर कलियुग संवत का आरम्भ हुआ। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईसवी पूर्व में शुरुआत हुई थी। संवत्सर के पाँच प्रकार माने गए हैं जिनमे सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास शामिल है। विक्रम संवत में इन सभी का समावेश है।

विक्रम संवत की शुरुआत 57 ईसवी पूर्व में हुई थी।चूंकि इसको शुरू करने वाले सम्राट विक्रमादित्य थे इसीलिए उनके नाम पर ही इस संवत का नाम रखा गया है। इसके बाद 78 ईसवी में शक संवत का आरम्भ हुआ था।नवसंवत्सर से शुरू हो रहे वर्ष के पाँच प्रकार  सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास  होते हैं। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। इसमें वर्ष का प्रारंभ सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से माना जाता है। फिर जब मेष राशि का पृथ्वी के आकाश में भ्रमण चक्र चलता है तब चंद्रमास के चैत्र माह की शुरुआत हो जाती है। सूर्य का भ्रमण इस समय किसी अन्य राशि में हो सकता है।चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। चंद्र वर्ष में चंद्र की कलाओं में वृद्धि हो तो यह 13 माह का होता है। जब चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होकर शुक्ल प्रतिपदा के दिन से बढऩा शुरू करता है तभी से हिंदू नववर्ष की शुरुआत मानी गई है।

सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं।
लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। इन्हें चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा आदि कहा जाता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।नववर्ष को भारत के प्रांतों में अलग-अलग तिथियों के अनुसार मनाया जाता है। ये सभी महत्वपूर्ण तिथियाँ मार्च और अप्रैल के महीने में आती हैं। इस नववर्ष को प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है।लेकिन मुख्यत: चैत्र माह से ही नववर्ष की शुरुआत मानी गई है और इसे नव संवत्सर के रूप में जाना जाता है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है।

इस विक्रम संवत में नववर्ष की शुरुआत चंद्रमास के चैत्र माह के उस दिन से होती है जिस दिन ब्रह्मा ने सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार  लिया था। इसी दिन भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी। इसी दिन से रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है। इसी दिन से चैत्र पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का प्रथम दिन माना गया है।रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नये वर्ष पर सूरज की पहली किरण का स्वागत करके यह नववर्ष नवसंवत्सर के रूप में मनाया जाता है। नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण करते है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया जाता है।नए सद संकल्पों के साथ इस नए वर्ष की शुरुआत होती है।

02 अप्रैल से नव संवत्सर 2079 का प्रारंभ हो रहा है। इस नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के पहले दिन से होता है।  इसी दिन से चैत्र नवरात्रि 2022 की भी शुरुआत हो रही है।नववर्ष के राजा शनि और मंत्री गुरु होंगे। इसी प्रकार  अन्य ग्रहों की भी अलग-अलग भूमिका रहेगी। इस साल के राजा न्याय के देवता शनि होने के चलते इस नवसंवत्सर के दौरान न्याय के क्षेत्र में कुछ खास स्थिति देखने को मिल सकती है।नववर्ष 2079 में ग्रहों के मंत्रिमंडल में राजा-शनि, मन्त्री-गुरु, सस्येश-सूर्य, दुर्गेश-बुध, धनेश-शनि, रसेश-मंगल, धान्येश-शुक्र, नीरसेश-शनि, फलेश-बुध, मेघेश-बुध रहेंगे। इस वर्ष तेज हवाओ, चक्रवात, तूफान, भूकंप भूस्खलन आदि की संभावना बढी हुई है।वर्ष के राजा शनि होने के कारण जनता में शासकों के प्रति अविश्वास में वृद्धि देखने को मिल सकती है। इस नववर्ष में न्याय का शिकंजा मजबूत होने के चलते अपराधियों को दंड देने की प्रक्रिया में तेजी आएगी। पश्चिमी और मध्यपूर्व एशिया देशों में संघर्ष की स्थिति भी निर्मित होगी।  महंगाई लगातार बढ़ती रहने की सम्भावना है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *