चकराता से शिवराज राणा की रिपोर्ट: उत्तराखण्ड के अपने जनप्रतिनिधियों का चयन करने जा रहे है, हमें भारतीय संविधान ने शक्ति प्रदान की है कि हम अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए प्रतिनिधि चुनते है, संविधान ने देश के दलित, पिछडे, अल्पसंख्यकों, महिलाओं, बुर्जुगों की सुरक्षा हेतु अनेक प्राविधान किये है, किन्तु हमारे प्रतिनिधि जनता की समस्याओं को सुलझाने की बजाय अपना, अपने परिवार का ध्यान रखते हुए अपार दौलत इक्कठी करते हैं।
उन्होंने कहा कि जनता हर बार ठगा सा महसूस करती है, ऐसे ही एक प्रतिनिधि के बारे में जनता के नाम खुला पत्र जारी कर रहा हूँ। प्रतिनिधि प्रीतम सिंह ने कहा कि हमारे उत्तराखण्ड के चकराता विधानसभा से वर्षों से चयन होते आ रहे है। उत्तराखण्ड राज्य निर्माण से ही प्रीतम सिंह, मत्री पद, विधायक व कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे किन्तु इन्होंने हमेशा जनता को ठगा है।
वर्ष 2013 में उत्तराखण्ड में विजय बहुगुणा सरकार में गृहमंत्री थे. इनके शासन में दलितों को मन्दिर प्रवेश चकराता में मारा-पीटा गया. इस घटना पर दलित विरोधी प्रीतम सिंह ने चुप्पी साधे रखी, जिससे प्रतीत होता है कि दलितों की पिटाई में प्रीतम सिंह की भागीदारी थी।
विजय बहुगुणा सरकार के समय अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के लिए मौ० इरशाद अहमद कमेटी का गठन किया गया, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का पक्ष रखने के लिए प्रीतम सिंह को कमेटी ने आमंत्रित किया, किन्तु दलित विरोधी मानसिकता रखने वाले प्रीतम सिंह मौ० इरशाद अहमद कमेटी के समक्ष प्रस्तुत नहीं हुए।
वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश में भा0ज0पा0 सरकार ने पुलिस भर्ती में अभ्यार्थियों की छाति पर एस0सी0/एस0टी0 शब्द लिखा, जिससे हमारे युवा अपमानित हुए, मामले को गंभीरता से लेते हुए कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस मुददे पर सभी प्रदेश अध्यक्षों को इस मामले पर विरोध करने का आदेश दिया किन्तु प्रीतम सिंह ने केन्द्रीय नेतृत्व के आदेश की अवहेलना करते हुए चुप्पी साधे रखी।
उत्तराखण्ड राज्य में भा0ज0पा0 की सरकार ने एस0सी0/एस0टी0 का प्रमोशन में आरक्षण समाप्त किया, तब भी कांग्रेस के केन्द्रीय भेतृत्व ने प्रमोशन में आरक्षण समाप्त करने के निर्णय का विरोध करने का आदेश दिया, किन्तु अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विरोधी मानसिकता रखने वाले प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने चुप्पी साधे रखी।
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुसूचित जाति व जनजाति के आरक्षण में क्रिमीलेयर की बात की, तब भी प्रीतम सिंह ने चुप्पी साधे रखी। प्रीतम सिंह वर्षों से जनजाति क्षेत्र से चुनकर आते है, इस पर इनकी चुप्पी वंचित समाज के विरोधी की ओर इशारा करती है।
प्रीतम सिंह के प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल में जितने भी उपचुनाव हुए है, इनमें कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जो प्रश्नचिन्ह लगा रहा है।
2019 के लोकसभा चुनावों में प्रदेश की सभी सीटों पर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। प्रीतम सिंह की नीतियों व कार्य इसके लिए जिम्मेदार है।
उत्तराखण्ड के स्थानीय निकायों व पंचायत चुनावों में भी कांग्रेस पार्टी को हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि प्रीतम सिंह की अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति विरोधी मानसिकता के कारण दलित समाज ने स्थानीय निकाय व पंचायत चुनावों में कांग्रेस पार्टी को वोट नहीं दिया।
प्रीतम सिंह के विधायक के कार्यकाल की जॉच की जाये तो जानकारी मिलती है कि इन्होंने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातिया, पिछड़े वर्गो, महिलाओं, बुर्जुगों व बच्चों के लिए कोई कार्य नही किया। इनके कार्यकाल के दौरान जमकर पैसे की बंदरबॉट हुई, व भ्रष्टाचार खूब किया गया।