काम की ख़बर :- उत्तराखंड में आगामी 11 दिसम्बर 2021 को आयोजित होगी राष्ट्रीय लोक अदालत, जानिए क्या है लोक अदालत इसके कार्य एवं शक्तियां..?
देहरादून। उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के सदस्य सचिव आर के खुल्बे द्वारा जानकारी दी गई है कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण नई दिल्ली द्वारा प्रदेश में दिसंबर माह के द्वितीय शनिवार 11 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय लोक अदालत के आयोजन का अनुमोदन किया गया है । इसी क्रम में उत्तराखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण नैनीताल के माननीय चेयरमैन द्वारा उत्तराखंड में सभी जिला और वाह्य ( outlying) अदालतों में 11 दिसंबर को लोक अदालत के आयोजन का निर्णय लिया गया है । यह लोक अदालतें माननीय उच्च न्यायालय के साथ-साथ श्रम न्यायालयों, राज्य और जिला उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोगों और डेट रिकवरी ट्रिब्यूनल देहरादून में भी आयोजित की जाएंगी।
जानिए क्या है लोक अदालत इसके कार्य एवं शक्तियां..?
लोक अदालत के द्वारा लोगों के लिए एक ऐसा मंच प्रदान किया जाता है जहां वैसे मामले का निपटारा किया जाता है जो अभी कोर्ट में लंबित पड़े हैं या फिर वैसे मामले जो अभी कोर्ट के समक्ष नहीं लाए गए हैं ।
“इसके अंतर्गत विवाद होने पर मामले को दोनों पक्षों द्वारा आपसी बातचीत करके समझौते द्वारा विवाद को सुलझाया जा सकता है ।”
लोक अदालत का अर्थ
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार लोक अदालत भारत की प्राचीन सभ्यता की न्याय व्यवस्था का ही एक रूप है जिसकी वैधानिकता आधुनिक युग में भी विद्यमान है ।
” लोगों की अदालत होने के नाते यह गांधीवादी आदर्शों को चरितार्थ करती है ।”
भारतीय न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या काफी ज्यादा है और दिनों दिन इसकी संख्या बढ़ती जा रही है ।
न्यायालयों में इन मुकदमों की सुनवाई के लिए एक लंबी, खर्चीली और श्रम साधक प्रक्रिया है अदालतों में एक छोटे से मामले के निपटारे में भी कई साल लग जाते हैं ।
जिसके विकल्प के रूप में लोक अदालत का गठन किया गया है लोक अदालतों द्वारा मामले को त्वरित, कम खर्चीली तथा आपसी मध्यस्थता द्वारा मामले का निपटान किया जाता है ।
“लोक अदालत के द्वारा दिये गये फैसलों से कोई पक्ष हारता या जीतता नहीं है जिससे दोनों पक्षों के बीच विद्वेष नहीं रहता है ।”
लोक अदालत के स्थापना कब हुई ?
आजादी के बाद भारत में पहली बार लोक अदालतों के गठन का विचार सर्वप्रथम सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश P.N.BHAGWATI को आया ।
जिसके बाद 1982 में गुजरात में इसका प्रथम आयोजन किया गया जो विवादों को निपटाने में काफी सफल रहा इसकी लोकप्रियता को देखते हुए देश के अन्य हिस्सों में भी लोक अदालतों का प्रसार होने लगा । इसकी लोकप्रियता को देखते हुए लोक अदालत को वैधानिक दर्जा देने के लिए वैधानिक सेवाएं प्राधिकरण अधिनियम, 1987(legal services authority act) पारित किया गया ।
” 9 नवंबर 1995 से यह अधिनियम पूरे देश में लागू हो गया जिसने लोक अदालत के कार्यों को वैधानिकता प्रदान की ।”
– राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां
इस अधिनियम के कुछ महत्वपूर्ण प्रावधान
1.) राज्य वैधानिक सेवा प्राधिकरण/ जिला वैधानिक सेवा प्राधिकरण अथवा सर्वोच्च या उच्च न्यायालय वैधानिक सेवा प्राधिकरण इन सारे प्राधिकरण को जहां भी उचित लगता है वहां लोक अदालत का गठन कर सकती है ।
2.) किसी स्थान में आयोजित होने वाले लोक अदालतों में कितने सेवारत एवं सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी तथा उस इलाके की सामाजिक कार्यकर्ता शामिल होंगे यह सब इन वैधानिक सेवा प्राधिकरण का दायित्व होता है ।
” सामान्यतः एक लोक अदालत में एक अध्यक्ष ( न्यायिक अधिकारी ) तथा एक वकील और एक सामाजिक कार्यकर्ता सदस्य के तौर पर लोक अदालत का हिस्सा होते है ।”
3.) लोक अदालतों के पास यह अधिकार होता है कि वह विवाद की स्थिति में दोनों पक्षों के मध्य समझौता करा सकें ।
किस प्रकार के विवादों को लोक अदालत में लाया जाता है ।
1.) कोई भी मामला जो किसी न्यायालय में लंबित हो ।
( ध्यान रहे मामला उस लोक अदालत की सीमा क्षेत्र में आता हो ।)
2.) ऐसा कोई मामला जो किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता हो लोक अदालत के सामने प्रस्तुत नहीं किया जा सकता ।
लोक अदालत के समक्ष लाए जाने वाले मामले
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 320 के अनुसार वैसे मामले जो संगीन अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं जैसे –
★ विवाह संबंधी/पारिवारिक विवाद
अपराधिक मामले( compoundable offences)
★ भूमि अधिग्रहण संबंधी मामले
★ श्रम संबंधी विवाद
★ पेंशन मामले
★ कर्मचारी क्षतिपूर्ति के मामले
★ बैंक वसूली के मामले
★ उपभोक्ता शिकायत के मामले
★ बिजली, टेलीफोन बिल के मामले
★ आवास वित्त से संबंधित मामले
★ मकान कर आवास विवाद इत्यादि ।
वैसे मामले जो लोक अदालत के समक्ष नहीं लाए जाते है ।
लोक अदालत का ऐसे मामलों पर कोई अधिकार नहीं होता जो किसी ऐसे अपराध से जुड़े हैं जो कानून के अंतर्गत समाधेय(compoundable) नहीं है अर्थात वैसे अपराध जो गैर- समाधेय( non-compoundable ) है ।
किसी भी ऐसे कानून के तहत लोक अदालत के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आते इस प्रकार के अपराध में समझौता नहीं होता है ।
अदालत में लंबित कोई भी मामला लोक अदालत में लाया जा सकता है यदि;
● यदि दोनों पक्ष विवाद का समाधान लोक अदालत के माध्यम से करना चाहते हैं ।
● यदि वादियों में से कोई एक न्यायालय के मामले को लोक अदालत में संदर्भित के लिए आवेदन देता है ।
● यदि न्यायालय को लगता है कि मामला लोक अदालत के संज्ञान में लाए जाने के लिए उपयुक्त है ।
● अगर संबंधित राज्य का आवेदन मामले के संबंध में लोक अदालत को प्राप्त होता है ।
लोक अदालत की शक्तियां
लोक अदालत को civil procedure code, 1908 के अंतर्गत सिविल न्यायालय के समान शक्तियां प्राप्त है ।
1.) किसी गवाह को समन भेजना और शपथ दिलवा कर उसकी परीक्षा लेना
2.) किसी दस्तावेज़ को प्राप्त एवं प्रस्तुत करने का अधिकार ।
3.) किसी भी अदालत या कार्यालय से दस्तावेज की मांग करना ।
4.) शपथ पत्रों पर साक्ष्यों की प्राप्त ।
5.) ऐसी सभी शक्तियां जो सिविल न्यायालय को प्राप्त होती है ।
6.) लोक अदालत में होने वाली कार्यवाही को भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत निर्धारित नियमों के मुताबिक अदालती कार्यवाही माना जाएगा ।
लोक अदालत के लाभ
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार लोक अदालत के निम्नलिखित लाभ होते हैं ।
1.) इसमें कोई अदालती फीस (court fees) नहीं लगता अगर फीस का भुगतान कर दिया गया है तो मामला निपटने के बाद राशि लौटा दी जाती है ।
2.) लोक अदालत की सबसे प्रमुख लाभ लचीली अदालती प्रक्रिया एवं विवादों की त्वरित सुनवाई है ।
3.) पक्ष अपने वकीलों के माध्यम से सीधे न्यायाधीश से बात कर सकते हैं जो नियमित न्यायालयों में संभव नहीं हो पाता है ।
4.) मुआवजे की राशि का निपटारा तुरंत हो जाता है ।
5.) विवादों को लोक अदालत में आपसी सुलह से निपटा लिया जाता है ।
अतः किसी पक्ष को दंडित नहीं किया जाता है
इसके अतिरिक्त कुछ अन्य लाभ भी हैं जैसे- कम खर्चीला, त्वरित कार्यवाही, तकनीकी उलझनों से मुक्ति, मतभेदों पर खुलकर चर्चा इत्यादि ।
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लोक अदालत के खिलाफ अपील
लोक अदालत का निर्णय सभी पक्षों पर बाध्यकारी व अंतिम होता है अतः इसका निर्णय गैर अपीलीय होता है इसके खिलाफ किसी भी न्यायालय में अपील नहीं होती है ।
लोक अदालत दो प्रकार के होते हैं
1.) स्थाई लोक अदालत और
2.) अस्थाई लोक अदालत
● स्थाई लोक अदालत में आप विवादों को सीधा कोर्ट की जगह लोक अदालत में ले जा सकते हैं वहीं दूसरी तरफ
● अस्थाई लोक अदालत में वैसे विवाद आते हैं जो पहले से न्यायालय में लंबित है वहां से अनुमति लेकर केस को लोक अदालत में हस्तांतरित किया जा सकता है ।
● स्थाई लोक अदालत में एक करोड़ तक के मुकदमे की अपील कर सकते हैं दूसरी तरफ और अस्थाई लोक अदालत में इसकी कोई सीमा तय नहीं की गई है ।
● स्थाई लोक अदालत में आपसी समझौते से मामले को हल किया जाता है तथा लोक अदालत का निर्णय अंतिम होगा परंतु
● अस्थाई लोक अदालत में अगर आपसी समझौते से मामला हल नहीं होता है तो आपके पास कोर्ट में जाने का विकल्प मौजूद होता है ।
लोक अदालत के कई स्तर होते हैं ।
◆ अगर मामला तहसील के स्तर का है तो आप तहसील जाकर पता कर सकते हैं कि अगली लोक अदालत का आयोजन कब होगा
◆ अगर मामला जिला न्यायालय में है तो आप जिला स्तर के लोक अदालत में जा सकते हैं ।
◆ अगर मामला उच्च न्यायालय में लंबित है तो आप राज्य स्तर से संबंधित लोक अदालत में जा सकते हैं ।
◆ सुप्रीम कोर्ट की भी लोक अदालत होती है जिस का निपटारा सुप्रीम कोर्ट की लोक अदालत के द्वारा किया जाता है ।
◆ राष्ट्रीय स्तर के लोक अदालतों का कार्य जितने भी स्तर के लोक अदालत होते हैं उनके कार्यकलाप की निगरानी रखना ताकि वो ईमानदारी पूर्वक कार्य कर सके ।
अतः भारत जैसे बड़े देश जहाँ की आवादी के लिए न्यायालय तक पहुँच ही मुश्किल से हो पाती है उसके लिए फैसले के इंतजार में चलने वाली मे सालों-सालों की खर्चीली एव कष्टदायी प्रक्रिया से मुक्ति लोक अदालतों के माध्यम से आसानी से मिल जाता है ।