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बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे तय कर सकते हैं ये 5 कारक

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। राज्‍य में तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे। मतदान 28 अक्‍टूबर से 7 नवंबर के बीच होगा, जिसके नतीजे 10 नंवबर को साफ हो जाएंगे।

नई दिल्‍ली। बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। राज्‍य में तीन चरणों में वोट डाले जाएंगे। मतदान 28 अक्‍टूबर से 7 नवंबर के बीच होगा। कोरोना महामारी के बीच यह पहला बड़ा चुनाव होने वाला है। चुनाव को ठीक और सुरक्षित तरीके से संपन्‍न कराने के लिए चुनाव आयोग ने गाइडलाइंस भी जारी कर दी है। अब सिर्फ कोरोना वायरस ही अकेला कारक नहीं है, जो इन चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर सकता है, बल्कि ऐसे में चार कारक और हैं।

बिहार की राजनीतिक स्थिति 2015 के चुनावों से पहले की स्थिति से बिल्कुल अलग है। इसके बाद 1990 के दशक के बाद से राज्य के राजनीतिक परिदृश्य पर हावी दो लोगों नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के खिलाफ महागठबंधन बनाने के लिए अपनी दुश्मनी का भुला दिया था। शक्तिशली गठबंधन ने बीजेपी को परास्‍त कर दिया। हालांकि गठबंधन अधिक समय नहीं रहा, जिसके बाद नीतीश कुमार 2017 में एनडीए में वापस आ गए।

एनडीए ने 2019 के लोकसभा चुनाव जीत लिए। अब लालू यादव रांची जेल में भ्रष्टाचार के आरोप में सजा काट रहे हैं। वहीं अगर 2019 के चुनाव परिणाम किसी भी तरह के संकेत हैं, तो लालू के बेटों में अपने पिता की राजनीतिक अपील और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को ऊपरी स्थिति में लाने लायक क्षमता नहीं है। सीधे शब्दों में कहें तो 2020 के चुनावों में एनडीए को झटका लगने की संभावना 2015 की तुलना में बहुत कम है।

मुस्लिम मतदाता क्या करेंगे?
भले हीनीतीश कुमार ने 2005 और 2010 में एनडीए की तरफ से चुनाव लड़ा, लेकिन नीतीश कुमार को विधानसभा चुनावों में मुसलमानों का महत्वपूर्ण समर्थन मिला। उन्होंने नरेंद्र मोदी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी के लिए में बीजेपी के साथ भागीदारी की यह इस तथ्य का प्रमाण है। क्या मुस्लिम वोट बैंक का हिस्‍सा फिर से जदयू और एनडीए में लौटेंगे? इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है, विशेष रूप से इस तथ्य को देखते हुए कि आरजेडी इन चुनावों में अपने सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है।

क्या नीतीश कुमार चुनाव प्रचार में सांप्रदायिक रूप से आरोपित बयानबाजी को करने के अपने अब स्थापित अभ्यास को छोड़ने के लिए भाजपा पर हावी हो पाएंगे? मौजूदा बीजेपी द्वारा इस तरह के किसी भी अपवाद को हिंदुत्व की अपनी मूल राजनीति के कमजोर पड़ने की संभावना है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन (AIMIM) की किस्मत का एक और पहलू होगा, जो राज्य के मुस्लिम बहुल उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में उपचुनाव जीतने में कामयाब रहा। एआईएमआईएम के लिए कोई महत्वपूर्ण लाभ राज्य में आरजेडी के नेतृत्व वाले मोर्चे के लिए मुस्लिम समर्थन के नुकसान की शुरुआत का संकेत दे सकता है।

क्या आर्थिक दर्द सत्ता विरोधी लहर में तब्दील हो जाएगा?
दो कारकों ने बिहार के कोरोना महामारी के दर्द को कई अन्य राज्यों की तुलना में बदतर बना दिया है। इसमें एक बहुत ही खराब स्वास्थ्य ढांचा है, जिसने राज्य की प्रतिक्रिया को प्रभावित किया है। दरअसल, कई विपक्षी दलों ने मांग की कि स्वास्थ्य संकट के कारण चुनाव स्थगित किए जाएं। राज्य को अपनी आबादी में प्रवासी श्रमिकों के उच्च हिस्से के कारण सबसे बड़े झटके का सामना करना पड़ा है। गौरव नैय्यर और क्यॉन्ग यांग किम द्वारा 2018 विश्व बैंक की रिपोर्ट में पाया गया कि बिहार के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में प्रवासियों द्वारा भेजे गए रुपये की हिस्सेदारी 35% थी और घरेलू स्तर पर सकारात्मक रूप से प्रभावित खपत थी। जबकि केंद्र सरकार ने राज्य में विकास परियोजनाओं के बारे में चुनाव पूर्व घोषणा की है।

कोरोना महामारी चुनाव को कैसे प्रभावित करेगी?
चुनाव आयोग ने चुनाव अभियान और मतदान प्रक्रिया के दौरान कोरोना महामारी को देखते हुए दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। इनमें सोशन डिस्‍टेंसिंग भी शामिल है। अब इनका पालन होता है या चुनाव कोरोना संक्रमण को बढ़ाएंगे। ये नवंबर में पता चलेगा। महामारी से संबंधित एक ही सबसे महत्वपूर्ण मीट्रिक है जो चुनाव को प्रभावित कर सकता है। वह है मतदाता। यह कहना उचित है कि महामारी ने समाज में दो लोगों को पैदा किया है। पहले वो जो किसी कीमत पर बाहर नहीं निकलते। और दूसरे वो जो इससे घबराते नहीं हैं। बिहार में सामाजिक-आर्थिक अभिजात वर्ग के बड़े हिस्से एनडीए समर्थक हैं।

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