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आठ साल बाद, क्या अच्छे दिन आ रहे?

श्रुति व्यास
इन आठ वर्षों में भले ही कई लोगों ने ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद छोड़ दी हो लेकिन कहानी, कथानक और नायक अभी भी प्रशंसा और श्रद्धेय के स्थान पर हैं।ज्जहां तक कहानी का सवाल है, अब कथाकार मोदी के साथ-साथ सवा सौ करोड़ लोग कहानी बताते हुए हैं। मगर नरेंद्र मोदी अब कथाकार नहीं हैं। वे अपनी कहानी कह चुके। मोदी की कहानी की विरासत अब सवा सौ करोड़ लोगों के हाथों में है। कहानी उनकी भी है, जो अच्छे दिनों के लिए तरस रहे हैं। क्या आपको लगता है अच्छे दिन आ रहे हैं?

हम विश्वासी लोग हैं। और विश्वास के सही होने की आस पाले रहते हैं। सन् 2014 में नरेंद्र मोदी के नाम से एक नया विश्वास उभरा था। उस विश्वास में देश ने उनकी कहानी को अपना बनाया था। उन्होंने नए परिप्रेक्ष्य में उम्मीद की एक कहानी गढ़ी। वह ऐसा समय था जब माहौल निराशा, नाकाबलियत, आतंकवाद और शत्रुता से भरा था। नरेंद्र मोदी ने तब खुद को एक सुधारक के रूप में, आधुनिक, नए भारत में परंपरागत मूल्यों को बहाल करने के दृढ़ निश्चयी के रूप में प्रचारित किया था। परिणामत: पूजा करने वालों के देश में नरेंद्र मोदी की अंधभक्ति ने उन्हें जल्दी ही सवा सौ करोड़ भारतीयों का वह अवतार बना दिया जो ‘अच्छे दिन’ लाने वाला था।

बाकी सब की तरह मुझे भी मोदी की कहानी की खूबियां और ताजगी अच्छी लगी। ऐसे में 2014 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी का साक्षात्कार करने के लिए जब मैं अपने पिता श्री हरि शंकर व्यास के साथ गांधीनगर गई और मुख्यमंत्री निवास में मोदी से इंटरव्यू होते देखा, सवाल-जवाब सुने तो मैं गदगद, उत्साहित और मंत्रमुग्ध थी। इंटरव्यू के समय तक वे देश के पसंदीदा विकल्प बनते लग रहे थे। वे इस बात को समझने लगे थे कि लोग उन्हें अपनी आशा, अपने मसीहा के रूप में देख रहे हैं। उन पर दबाव जबरदस्त था, लेकिन पीएम पद के बतौर उम्मीदवार वे बेफिक्र से लग रहे थे। वे अपनी क्षमता, आकर्षण और बन रही जनभावनाओं से वाकिफ थे।

उनसे जब भारत के मौजूदा संकटों में उनकी सोच के सवाल हुए तो नरेंद्र मोदी ने इस तरह जवाब दिया मानों उनके लिए यह सब चुटकियों का काम है। उनके आत्मविश्वास, आधुनिक भारत के साथ पुराने रीति-रिवाजों को बुनने के इरादे जान कर मुझे बहुत अच्छा लगा। प्रधानमंत्री बनते ही सब बेहद आसान और मजेदार हो जाएगा। वाकई, नरेंद्र मोदी देश की एक कहानी और उसके ऐसे प्रतीक बने, जिसकी आवश्यकता भारत को नई सदी में प्रवेश करने के लिए थी। उस समय उनमें एक मजबूत कथा और ईमानदार इच्छाशक्ति का मेल था। ‘अच्छे दिन’ निश्चित ही आते लग रहे थे।
16 मई 2014 को, बहुत उत्साह और धूमधाम के बीच, देश के 15वें प्रधानमंत्री के साथ, भारत को एक नई कहानी मिली। दिल्ली की राजनीति में बाहरी होने और अपनी विनम्र शुरुआत का फायदा उठाते हुए, नरेंद्र मोदी ने पूरा माहौल बदल दिया। उस समय वे जोश से भरे हुए थे। उन्होंने पुरानी राजनीति तथा राजनेताओं के तौर-तरीकों के प्रति मोहभंग के बीच अपना जलवा बनाया। वोट बैंक की राजनीति के लिए अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले, भारतीयों के वृहत्तर समूह जिसमें युवा, पिछड़े, ग्रामीण और मध्यम वर्ग के लोग शामिल हैं, की भावनाओं को उन्होंने झिंझोड़ा। वे उनके प्रतिनिधि बन

गए, कहानी में उनके ‘गोलिएथ’। भारत की नई कहानी और उसके महानायक नरेंद्र मोदी!
एक ऐसी दुनिया में जहां अब्राहम लिंकन, रिचर्ड निक्सन, विंस्टन चर्चिल, मारग्रेट थैचर, एंजेला मर्केल, बराक ओबामा से जैसी कई कहानियों को सुनने-सुनाने का अनुभव है उसमें भारत ने भी वह एक नया नेता पाया, जिसके भाषण न केवल मनमोहक, सम्मोहक, और भावनाओं के उद्दीपक थे, बल्कि उनके विदेशी श्रोता भी थे। भारत देश की नई कहानी का देश और विदेश दोनों जगह प्रसारण होने लगा। मानों वे भारत के पहले प्रधानमंत्री थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू (जो आज बहुत तिरस्कृत हैं) नहीं, जिनकी कहानी से ही भारत है। कभी नेहरू से भारत की कहानी थी। उनके बाद भारत में कहानीकारों और कहानियों को लेकर खालीपन सा रहा है। भारत बढ़ा लेकिन उसकी कहानी नहीं। मोदी के पूर्ववर्ती को ‘मौन’, ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के रूप में जाना जाता था। उनके काम, उनके समय की आर्थिक प्रगति को अस्वीकार कर दिया गया था, क्योंकि मनमोहन सिंह न तो कहानी थे और न ही एक कुशल कहानी सुनाने वाले। और एक पूरी पीढ़ी के लिए, खासकर पिछली सदी के अंतिम वर्षों में पैदा हुए हम जैसों के लिए जिनका राजनीति में कोई रोल मॉडल नहीं था, कोई कहानी, कोई कथा नहीं थी, सिवाय सत्ता और भ्रष्टाचार की गंदी राजनीति के।

उस सब में आठ साल पहले बदलाव आया। सब कुछ अचानक बदल गया। भारत नेहरू के जमाने की छुक-छुक करती आई रेल से सीधे मोदी के ‘न्यू इंडिया’ की ‘बुलेट ट्रेन’ की छलांग लिए हुए था। आज मोदी नेहरू को याद करते हैं जबकि जनता उनकी नेहरू से तुलना करती है। आजादी के 75वें वर्ष के अमृत महोत्सव का आख्यान यह है कि कभी नेहरू थे आज तो मोदी हैं!

आठ साल बीत चुके हैं। नरेंद्र मोदी ने पूरी पकड़, धमक के साथ प्रधानमंत्री का पद संभाला हुआ है। और यह सवाल बिना शोर के सबके दिल-दिमाग में है, अनुमान, अंदाज और जवाब तलाशता हुआ है कि क्या हमारे अच्छे बीते आठ साल? तालियों की और आलोचनाओं से लबालब संपादकीय की बाढ़ आई हुई है। आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास, अच्छे निर्णय, बुरे निर्णय, विकास, अधोगति के साथ अंधेरे में तीर चलते हुए कि क्या पाया और क्या गंवाया?  लेकिन मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के समय को न केवल भारत को आकार देने और बदलने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नीतियों पर चिन्हित और वर्गीकृत किया जाना चाहिए, बल्कि उनकी कहानी आम जनता के दिमाग और विवेक में कब तक, कितनी धकेले जा सकती है, इसे समझने की जरूरत है। क्योंकि नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें लोगों से सीधे जुड़े रहने का हुनर मालूम है। उनके लिए अखबारों के ऑप-एड और स्तुति गान या आलोचना कोई मायने नहीं रखती है।

जो मायने रखता है वह है लोगों की राय, वह समीकरण, जिससे उनके तार सवा सौ करोड़ देशवासियों से जुड़ते हैं। ‘न्यू इंडिया’, नेहरूवादी भारत जैसे जुमलों के बीच ज्यादातर लोगों को लगता है कि मोदी के नेतृत्व में भारत सुरक्षा और समृद्धि में फल-फूल रहा है। दुनिया में नाम है। 75 वर्षीय समता प्रसाद चौधरी से मेरी मुलाकात उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान गोरखपुर के डुमरियागंज में एक चाय की दुकान पर हुई थी। रूस ने यूक्रेन पर तब हमला कर दिया था और वहां फंसे हुए हमारे छात्रों को लेकर सुर्खियां थी। समता प्रसाद को पता नहीं था कि युद्ध क्यों हो रहा है, लेकिन उसने मुझे बताया कि “भारत का झंडा जहां होता था वहां रूस हमला नहीं करता था” ताकि भारत के छात्र पहले निकल जाएं! उसके ख्यालों के भारत के ऐसे रूतबे से वह गर्व में था और वह योगी सरकार के साथ अपनी समस्याओं और गुस्से, खेती की बढ़ती लागत और फसल खाने वाली गायों को भूला हुआ था। एक छोटे से गांव का किसान, जिसका कोई राजनीतिक झुकाव नहीं था और जो सोशल मीडिया के हल्लों से भी दूर था यह, मानते हुआ था कि नरेंद्र मोदी भारत के लिए सबसे अच्छी चीज हैं।
आज भाजपा-प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष रूप से 17 राज्यों में शासन कर रही है। यह देश का 44 फीसदी हिस्सा है। कोविड महामारी के दौरान कुप्रबंधों, मौतों की क्रूर संख्या के बावजूद, नरेंद्र मोदी के अनुमोदन की रेटिंग विश्व स्तर पर 70 प्रतिशत के उच्च स्तर पर है, जो इतिहास के सबसे अधिक मनहूस समय के दौरान किसी भी नेता को मिली उच्चतम रेटिंग है। आर्थिक बदहाली, समुदायों के बीच सुलगती दूरियों, चीन के भारतीय इलाके में घुसने के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी ने अपने इरादों, प्रचारों में ढील नहीं आने दी है। उनकी सराहना, समर्थन और उनके पक्ष व बचाव में सब कुछ पहले की तरह सुना जाता हुआ है। वे भारतीयों की एक पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा हैं जो ‘न्यू इंडिया’ बनते समझ रहा है।

निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है, वे एक ऐसे राजनेता बन गए हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी की पहुंच का विस्तार किया है, वहीं दर्शकों की मनोवैज्ञानिक जरूरतों और उनके राजनीतिक गाइड की भूमिका को भी पूरा करते हुए है। उन्हें एक अधिकतम नेता के रूप में, काम को नशे के रूप में देखने वाला माइक्रो-मैनेजर समझा जाता है, जो देश को आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रयोगशाला में बदलने के लिए काम कर रहा है, जो लोगों, दुनिया और तमाम टिप्पणीकारों के लिए दिलचस्प और डर दोनों पैदा करने वाला है।

इन आठ वर्षों में भले ही कई लोगों ने ‘अच्छे दिन’ की उम्मीद छोड़ दी हो लेकिन कहानी, कथानक और नायक अभी भी प्रशंसा और श्रद्धेय के स्थान पर हैं। एक जयकार है, एक गर्जना है और लोग खुशी व जश्न मनाते रहते हैं। दीवारों पर जो लिखा है वह यही है कि लोग अभी भी आशा और विश्वास से भरे हुए हैं। उनके लिए वे ईमानदार नेता हैं, जो उनकी परवाह करते हैं और जो उन्हें खतरों से बचाएंगे और जो भारत को मजबूत बनाएंगे।

जहां तक कहानी का सवाल है, उनकी कहानी अभी भी भारत की कहानी, ‘न्यू इंडिया’ की कहानी है। आइडिया ऑफ इंडिया में प्रधानमंत्री द्वारा हर दिन नए प्लॉट जोड़े जा रहे हैं। उसके साथ, आठ साल बाद, अनुकूल मुरीद लोग भी अपने-अपने हिस्से जोड़ रहे हैं। मगर नरेंद्र मोदी अब कथाकार नहीं हैं। अब मोदी की कहानी की विरासत सवा सौ करोड़ लोगों के हाथों में है। कहानी उनकी भी है जो अच्छे दिनों के लिए तरस रहे हैं। क्या आपको लगता है अच्छे दिन आ रहे हैं?

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