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Bihar assembly election 2020: देश के लिए इतना अहम क्यों है बिहार विधानसभा चुनाव?

नई दिल्ली/बिहार। चेसबोर्ड सज चुका है। सफेद और काले मोहरे किसके होंगे, ये भी तय हो चुका है। रणनीति भी बन चुकी है। युद्ध की रेखाएं भी खींच दी गई हैं। बस इंतजार है वोटिंग का। बिहार चुनाव में अब 20 से कम दिन बच गए हैं। ऐसे में बीजेपी, जेडीयू, आरजेडी, एलजेपी और कांग्रेस समेत सभी पार्टियां राजनीति के इस शतरंज की बाजी में शह और मात का खेल खेलने के लिए तैयार हैं। बिहार को हमेशा से एक सामाजिक और राजनीतिक पक्षपातपूर्ण राज्य के तौर पर देखा गया है। कोरोना वायरस महामारी में देश में ये पहला चुनाव है। ऐसे में वोटिंग के नियम भी बदले हैं और चुनाव प्रचार करने के तरीकों में भी बदलाव आया है। बिहार में लंबे समय के बाद लालू प्रसाद यादव और दिवंगत रामविलास पासवान के बिना चुनाव हो रहे हैं। इस बीच नीतीश कुमार भी बीजेपी के साथ गठबंधन को जारी रख सत्ता में दोबारा वापसी की पुरजोर कोशिश कर रहे हैं।

बिहार इतना जरूरी क्यों?
ऐतिहासिक रूप से बिहार जयप्रकाश नारायण की जमीनी राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों का गढ़ रहा है, जिसने शक्तिशाली इंदिरा गांधी सरकार को हिलाकर रख दिया था। फिर 1977 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने पहली बार इमरजेंसी लागू करनी पड़ी। कांग्रेस विरोधी ताकतों के गठबंधन ने बिहार में ही सामाजिक न्याय की राजनीति के बीज बोए। यहां के नेताओं जैसे नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और सुशील कुमार मोदी राष्ट्रीय स्तर पर उभकर आए। हालांकि, अब तीनों अलग-अलग राजनीतिक कोनों में खड़े हैं। 1977 में बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने मुंगेरीलाल आयोग की सिफारिशों को लागू किया, जो नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण प्रदान करता है।

क्या है बिहार चुनाव का महत्व?
बिहार भारत की तीसरी सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है। 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की आबादी 10।4 करोड़ थी। बिहार की आबादी ब्रिटेन, फ्रांस या इटली जैसे देशों की आबादी से अधिक है। इस चुनाव लगभग 7।29 करोड़ लोग वोटिंग के अधिकार का इस्तेमाल करेंगे। बिहार कई मायनों में भारत के अधिकांश राज्यों से अभी काफी पीछे हैं। यहां के ज्यादातर युवा पढ़े-लिखे बेरोजगार हैं। लॉकडाउन के दौरान जिस तरह से प्रवासी मजदूर नंगे पैर और कई किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बिहार में अपने-अपने गांव लौटने को मजबूर हुए। उससे देश में बिहार की दर्दभरी छवि और सच्चाई भी उजागर हुई है। इस चुनाव में बीजेपी-जेडीयू, आरजेडी ने वोट बैंक को लुभाने के लिए वैसे तो तमाम वादे किए हैं। अब देखना है कि बिहार के लोग किसकी सरकार बनाते हैं।

कोरोना महामारी का प्रभाव
2015 के बिहार चुनाव में कुल 56।8% वोटिंग हुई थी। लेकिन इस बार का चुनाव कोरोना महामारी के बीच हो रहा है। ऐसे में जाहिर तौर पर चुनाव में कोरोना का असर भी दिखेगा। चुनाव आयोग ने कोरोनो वायरस महामारी के दौरान वोटिंग को लेकर कई सावधानियां रखी हैं। ऐसे में देखना है कि कैसे राजनीतिक दल और इसके कार्यकर्ता पर्याप्त संख्या में मतदाताओं को बूथों तक ला पाते हैं। बीजेपी के प्रतिबद्ध कैडर को देखते हुए विपक्ष के लिए कम मतदान से बड़ा नुकसान हो सकता है।

डिजिटल कैंपेन
चुनाव आयोग ने बिहार चुनाव में डिजिटल कैंपेन पर जोर दिया है। आयोग ने बताया कि कोरोनाकाल में राजनीतिक दल के कार्यकर्ता घर-घर जाकर चुनाव प्रचार कर सकेंगे, हालांकि, उनकी संख्या पांच से ज्यादा नहीं होगी। उम्मीदवार को नामांकन के दौरान दो वाहन ही ले जाने की इजाजत होगी। नामांकन पत्र ऑनलाइन भी भरे जा सकते हैं। चुनाव प्रचार सिर्फ वर्चुअल माध्यम से ही होगा। बड़ी- बड़ी जनसभाएं नहीं की जा सकेंगी। बिहार जैसे पिछड़े राज्य में ज्यादातर आबादी इंटरनेट एक्सेस से अभी दूर है, ऐसे में राजनीतिक पार्टियों के लिए डिजिटल मीडियम के जरिए अपनी बातें उनतक पहुंचाना किसी चुनौती से कम नहीं है।

गठबंधन का गणित
बिहार चुनाव से कुछ महीने पहले से वहां पर राजनीतिक हलचल तेज हो गई। गठबंधनों में दरार पड़ने लगी। पुरानी दुश्मनी छोड़कर नई दोस्ती होने लगी। पहले जो नेता या पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा थी, अब वो किसी और गठबंधन में जा मिली है। इस बदलते राजनीतिक समीकरण के बीच सभी दलों को एक बड़ी दिक्कत आने वाली है। ये दिक्कत है सीट बंटवारे की। कैसे नए दोस्त को उसकी पसंद वाली सीट दी जाए। कैसे अपने पुराने साथियों को खुश किया जाए। साल 2015 के विधानसभा चुनाव में जो रिजल्ट आया था, वह इसी तरह से था। कई सीटों पर भाजपा-जदयू के अलावा जदयू-लोजपा, हम-जदयू-रालोसपा और राजद ने एक-दूसरे को टक्कर दी थी। लेकिन इस बार चुनाव में गठबंधन बदलकर अब कई पार्टियां उत्तरी ध्रुव से दक्षिण ध्रुव की तरफ चली गई हैं यानी अपना गठबंधन बदल लिया है।

रालोसपा एनडीए गठबंधन से अलग होकर राजद के साथ खड़ी है। बिहार में जदयू अब एनडीए की सबसे बड़ी पार्टी बन गई है। ऐसा मामला भाजपा और जदयू की 52 सीटों पर है। इसके अलावा अन्य पार्टियों की भी 46 सीटों को लेकर दुविधा है। न जाने कौन सी सीट किस पार्टी या नेता की झोली में जाएगी। कौन सी सीट किस पार्टी को मिलनी चाहिए, इसे लेकर विवाद बढ़ेगा।

पीएम मोदी के भाषण पर होंगी सभी की निगाहें
बिहार की राजनीति में बीते कुछ दिनों में काफी परिवर्तन देखने को मिले हैं। लोजपा ने एनडीए से तो अपना नाता तोड़ लिया, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति लगातार अपनी आस्था दिखा रही है। चिराग पासवान इन दिनों अक्सर कहते दिख रहे हैं कि चुनाव के बाद बिहार में लोजपा और बीजेपी साथ मिलकर सरकार बनाएगी। क्या चिराग जैसा सोचते हैं, वही सोच पीएम मोदी की भी है? इस तरह के सवाल इन दिनों बिहार की फिजां में गूंज रही है। इसलिए हर किसी की निगाहें पीएम मोदी और अमित शाह के बयानों पर होंगी।

बिहार बीजेपी लगातार दिखा रही नीतीश कुमार में आस्था
लोजपा के कार्यकर्ता भले ही ‘मोदी से बार नहीं, नीतीश से खैर नहीं’ का नारा बुलंद करते आ रहे हैं, लेकिन बिहार बीजेपी ने साफ-साफ कह दिया है कि बिहार में एनडीए के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही हैं। उनका नेतृत्व जिसे स्वीकार है, वहीं एनडीए का साझेदार बनेगा। बिहार बीजेपी के अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के सीटों की संख्या खुछ भी आए, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे।

बिहार चुनाव का क्या है शेड्यूल?
बिहार में 28 अक्टूबर को पहले फेज का मतदान होगा। 3 नवंबर को दूसरे और 7 नवंबर को तीसरे आखिरी चरण का चुनाव कराया जाएगा। 10 नवंबर को मतगणना (Bihar Election Date 2020) होगी, इसी के साथ बिहार में किसकी सरकार बनेगी ये भी स्पष्ट हो जाएगा।

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