उत्तराखंड

बड़ी खबर: पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत का बड़ा बयान, बोले- मुझे नहीं पता, क्‍यों हटाया गया

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त्रिवेंद्र सिंह रावत ने करीब चार साल सीएम की जिम्‍मेदारी संभाली है.

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने करीब चार साल सीएम की जिम्‍मेदारी संभाली है.

उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने खुद को हटाए जाने को लेकर बड़ा बयान दिया है.

देहरादून. उत्‍तराखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat)  ने आज अपने निर्वाचन क्षेत्र में बड़ा बयान दिया है. उन्‍होंने खुद को राज्‍य के सीएम पद से हटाने के बाबत कहा कि उन्हें नहीं पता, उन्हें क्यों हटाया गया. इसके साथ उन्‍होंने न्‍यूज़ 18 से खास बातचीत में कहा, ‘ ऐसा लगता है कि उनके खिलाफ साजिश रची गई थी.’

बता दें कि पूर्व मुख्‍यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी कुर्सी जाने के करीब एक महीने बाद कोई बड़ा बयान दिया है. यही नहीं, मुख्‍यमंत्री पद से इस्‍तीफा देने के बाद भी रावत ने कहा था कि अगर मेरे इस्‍तीफे की वजह जाननी है तो आपको दिल्‍ली जाना होगा. साफ तौर पर उनका इशारा भाजपा हाईकमान की तरफ था. हालांकि राजनीति के कई जानकारों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने को लेकर कहा कि बीते समय में पार्टी में गुटबाजी तेज होना, प्रशासन के स्तर पर ढीलापन और राज्‍य में विकास कार्यों की धीमी रफ्तार ने उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया. इसी वजह से उनकी कुर्सी चली गई.

मंदिरों पर लिए गए निर्णय की वजह से ज्यादा नाराजगी
यही नहीं, त्रिवेंद्र सिंह रावत की बात करें तो उनके कई निर्णयों को लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी थी, लेकिन एक निर्णय ने सबसे ज्यादा विवाद पैदा किया. ये निर्णय था चारधाम देवस्थानम मैनेजमेंट बिल. इस बिल को लेकर बीजेपी नेताओं के अलावा आरएसएस और विहिप में भी नाराजगी थी. इन सभी का मानना था कि राज्य सरकार को मंदिरों के नियंत्रण से दूर रहना चाहिए. जबकि त्रिवेंद्र सिंह रावत का मानना था कि सरकारी नियंत्रण के जरिए मंदिरों के प्रबंधन की और बेहतर व्यवस्था की जा सकती है.गैरसैंण को कमिश्नरी बनाए जाने का निर्णय पड़ा भारी!

त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को उत्तराखंड की तीसरी कमिश्नरी बनाने का फैसला लिया था. उत्तराखंड में पारंपरिक रूप से दो कमिश्नरी कुमाऊं और गढ़वाल हैं. इसे लेकर पहले की दो कमिश्नरी के लोगों में गुस्सा था. कहा गया कि इस निर्णय को लेकर टॉप लीडरशिप में भी नाराजगी थी.

दोस्त बिल्कुल नहीं, दुश्मन बहुत ज्यादा
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि रावत के बीजेपी में दोस्त बिल्कुल न के बराबर हैं. पार्टी के दिग्गज नेताओं में रावत को समर्थन देने वाले नेता तकरीबन नहीं हैं. महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के नजदीकी नेताओं में शुमार किए जाने वाले रावत को ‘दुश्मनी’ की कीमत भी चुकानी पड़ी.







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