बड़ा सवाल : गैरसैण में क्यूँ हुई पत्थरबाजी? देवभूमि उत्तराखंड की शांत वादियों में कश्मीर की तरह पत्थरबाजी करके विरोध करना कितना उचित है?
देहरादून। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैण जिसका सपना देखते-देखते इस प्रदेश की जनता की आँखें थक सी गई थी उस सपने के पूरा होनी की खुशी क्या ऐसे मनाई जाती है। पूरे प्रदेश के विकास का आकलन करे तो चमोली पर्वतीय जनपदों का एक ऐसा जनपद है जिसमें सबसे ज़्यादा विकास कार्य हो रहे है, क्यूँकि ग़ैरसैण इसी जनपद का हिस्सा है और उसके आसपास के क्षेत्र में 25000 करोड़ की भारी-भरकम धनराशि विकास कार्यों पर खर्च होनी है, तो विकास को लेकर यहाँ इस तरह के आंदोलन का कोई औचत्य नहीं रह जाता।
कुछ लोग कह रहे है कि कई दिनों से सैकड़ों लोग घाट में एक सड़क के चौड़ीकरण को लेकर आंदोलन कर रहे है लेकिन जब उनकी मांग पर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो उन्हें विरोध का रास्ता अपनाना पड़ा। देवभूमि उत्तराखंड की शांत वादियों में कश्मीर की तरह पत्थरबाजी करके विरोध करना कितना उचित है?
चमोली में ही रैणी आपदा का दर्द अभी कम भी नहीं हुआ और यहीं के लोग उन पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसा रहे थे जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डालकर बचाव कार्यों में अग्रणी भूमिका निभाई।
जब आंदोलनकारियों की मांग के संदर्भ में मुख्यमंत्री पहले ही घोषणा कर चुके है तो फिर माताओं और बहनों की आड़ में पुलिसकर्मियों पर पत्थर बरसाना कितना न्याय संगत है? वह लोग कौन है और क्यूँ पहाड़ की भोली-भाली जनता को भड़का कर इस तरह की घटनाओं को अंजाम दे रहे है?
हमारे पुलिसकर्मियों की इस बात के लिए तारीफ करनी चाहिए की उन्होंने पूरी संयमता के साथ घायल होकर भी अपने कर्तव्य का पालन किया और जमीन पर लाठियाँ पटक कर बेलगाम भीड़ को तितर-बितर किया। यहीं लाठियां अगर भीड़ पर बरसी होती तो दर्जनों लोग अस्पतालों में भर्ती हुए होते। अभिव्यक्ति की आजादी को हिंसा की आजादी में बदलना आजकल नया शगल हो गया है जो पूरे समाज और उसके विकास के लिए बेहद खतरनाक है।